- देवास में मां चामुंडा टेकरी की रोप वे का तार पुली से अलग हुआ, सवा घंटे तक फंसे रहे छह दर्शनार्थी

 भोपाल। प्रदेश के देवास जिले की प्रसिद्ध माता टेकरी के रोपवे पर सवा घंटे तक यात्री फंसे रहे। यात्रियों की जान इस दौरान हलक में फंसी रही। बारिश के चलते रेस्क्यू में भी रोपवे कर्मचारियों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा। कल शाम को आई आंधी के चलते रोपवे का तार टावर की पुली से निकल गया, जिससे सभी केबिन हवा में झूलने लगे। इस दौरान रोपवे के केबिन में सवार होकर आंध्रप्रदेश और उड़ीसा के दो परिवार में दो महिला, दो पुरूष और दो बच्चे बीच में ही अटक गए। 



दोनों परिवार करीब डेढ़ घंटे तक हवा में खतरनाक तरीके से झूल रहे केबिन में फंसे रहे। इस दौरान धुंआधार बारिश के चलते सभी केबिन में बुरी तरह भीग गए। करीब डेढ़ घंटे की मशक्कत के बाद केबिन को माता टेकरी वाले हिस्से में ले जाया जा सका, जिसमें सवार सभी लोगों को सकुशल नीचे उतार लिया गया। केबिन से बाहर आते ही महिला-पुरूष एक दूसरे से लिपटकर रोने लगे। बदहवास श्रद्धालुओं को प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों ने ढांढस बंधाया।इधर सूचना मिलने पर देवास में ही मौजूद एनडीआरएफ की टीम, एसडीआरएफ होमगार्ड की टीम, पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी और नगर निगम आयुक्त भी पहुंच गए थे।


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 समाचार लिखे जाने तक रेस्क्यू पूरा कर लिया गया था, लेकिन उपर एवं नीचे के टर्मिनल पर पहुंचे 6 केबिन के अलावा अन्य 6 केबिन हवा में झूल रहे थे।लापरवाही का आलम यह था कि रोपवे अधिकारियों को श्रद्धालुओं की कुल संख्या ही पता नहीं थी। पहले 8 श्रद्धालुओं के केबिन में होने के बारे में बताया गया, बाद में चार और अंत में 6 लोग केबिन से रेस्क्यू किए गए। एक केबिन में पी सतीष कुमार, पी आर्या उनका बेटा देवंत और दूसरे केबिन में एम रमेश, एम प्रियंका और बेटा एम रोशित सवार थे। 14 सालों के इंतजार के बाद आखिरकार जुलाई 2017 में यह रोप-वे शुरू हो गया था। 


तत्‍कालीन विधायक गायत्रीराजे पवार व महापौर सुभाष शर्मा ने शुभारंभ किया था। मालवा-निमाड़ के इस पहले रोप-वे से श्रद्धालुओं को 300 फुट ऊंची टेकरी पर पहुंचने में अब मात्र 3 मिनट का समय लगता है। रोप-वे प्रोजेक्ट के लिए नगर निगम और त्रेहान कंस्ट्रक्शन कंपनी के बीच 8 अप्रैल 2003 को एग्रीमेंट हुआ था। 4 अगस्त 2003 को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने भूमिपूजन किया था। नगर निगम द्वारा अन्य विभागों से एनओसी व परमिशन की प्रक्रिया पूरी करने के बाद 2010 में काम शुरू हो सका था, लेकिन बजट बढ़ने से एक बार फिर से काम धीमा हो गया। 10 अप्रैल 2017 को पहला ट्रॉयल लिया गया।

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