- निजी स्कूलों ने ताक पर रखे नियम, कहीं दुकानों में तो कहीं चार कमरों में हो रहे संचालित

निजी स्कूलों ने ताक पर रखे नियम, कहीं दुकानों में तो कहीं चार कमरों में हो रहे संचालित

बिना निरीक्षण किए ही दे दी मान्यता, योग्यता अनुसार शिक्षक भी नहीं, बच्चों के भविष्य के साथ किया जा रहा खिलवाड़
-जिले के कई स्कूलों में न खेल का मैदानए न ही बच्चों को बैठने बेहतर व्यवस्था
शिक्षा को व्यवसाय बना कर की जा रही कमाई
-पालकों से 12 माह की ली जाती है फीस, शिक्षकों को सिर्फ 10 माह का दिया जाता है वेतन, यह भी सबसे बड़ा सवाल
-शशिकांत गोयल/बेजोड़ रत्न/भिंड
भिण्ड। किसी भी देश के विकास में शिक्षा का स्थान सर्वोपरि होता है। किसी भी धर्म में शिक्षा को भी विशेष स्थान दिया गया है। लेकिन इसी शिक्षा को अधिकांश स्कूलों में अब व्यवसाय में परिवर्तित कर दिया गया है। हालात यह हैं कि शिक्षा कारोबारी धीरे-धीरे पूरे जिले में पैर पसारते जा रहे हैं। इन सब में खास बात यह है कि पोर्टल पर मनगढ़ंत जानकारी फीड़ कर विभाग के साथ धोखाधड़ी की जा रही है। बेजोड़ रत्न टीम ने पूरे मामले में जब पड़ताल की तो जो सच सामने आया वह चौंकाने वाला था। दरअसल पोर्टल पर दर्ज की गई शिक्षा विभाग की जानकारी में जब कुछ स्कूलों में जाकर देखा तो वहां का जो नजारा था वह पोर्टल से एकदम उलट था। खेल मैदानों व बच्चों के बैठने वाले कक्षों की जानकारी जो पोर्टल पर थी वह पूरी तरह से असत्य पाई गई। 

जिले में गली कूचों में चाय-पान की दुकानों जैसे स्कूल खोले गए हैं, स्कूलों में सुविधा के नाम पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। लेकिन फीस भारी भरकम वसूली जा रही है। जिलेभर में खुले निजी स्कूलों में से टीम ने कुछ स्कूलों का जायजा लेकर पोर्टल पर दी गई जानकारी को जांचा तो जो सच सामने आया वह चौंकाने वाला था।शहर के चतुर्वेदी नगर, जामना रोड, अटेर रोड, इटावा रोड, हाउसिंग कॉलोनी, वीरेन्द्र वाटिका, बीटीआई रोड, वाटर वर्क्स, कुम्रौआ रोड, ग्वालियर रोड, भारौली रोड सहित ग्रामीण क्षेत्र में कई स्कूल ऐसे संचालित हो रहे हैं निजी मकानों के अलावा शिक्षा विभाग के मापदंडों को खुलेआम चुनौती देते नजर आ रहे हैं ना तो इनके पास डीएड, बीएड पास शिक्षक और ना ही खेल मैदान है इतना ही नहीं विकलांग बच्चों के लिए रेम्प की व्यवस्था भी नहीं है, पर्याप्त हवादार कमरे, मानक अनुसार लंबाई-चौड़ाई। इसके साथ ही गर्ल्स, बॉय बच्चों के लिए पर्याप्त शौंचालये भी नहीं है फिर भी कौन से नियम के तहत ऐसे स्कूलों को मान्यता दी गई है यह सबसे बड़ा सवाल है। अरे नौ-निहाल बच्चों के भविष्य का सवाल है। कमसे कम योग्यता अनुसार शिक्षक तो होना ही चाहिए वह भी नहीं है। पोर्टल पर कई स्कूल वालों ने गलत-शलत जानकारियां एकत्रित की है। खुलेआम पालक-अभिभावकों को शिक्षा माफिया गुमराह करने में लगे हुए हैं। ऐसे कई स्कूलों में जब रिपोर्टर ने पड़ताल की तो स्कूल के पास किसी भी खाली जगह को खेल मैदान बना दिया जाता है।
पालकों से अधिक फीस, शिक्षकों को वेतन कम
निजी शालाओं में पालकों से 100 रुपए से लेकर 1700 रुपए तक प्रत्येक विद्यार्थियों से मासिक शुल्क वसूला जा रहा है। लेकिन ऐसे स्कूलों में आरटीई के मापदंड के अनुरूप शिक्षक नहीं हैं। जानकारी के अनुसार निजी शालाओं में न्यूनतम 8 सौ रुपए से अधिकतम 5 हजार रुपए तक मासिक पगार दी जा रही है। लिहाजा अल्प वेतनमान पर डीएड, बीएड जैसे योग्यताधारी शिक्षक नहीं मिलते। नगर के निजी स्कूलों में शिक्षकों को केवल 10 महीने का अल्प वेतनमान दिया जा रहा है और पालकों से बच्चों की 12 महीने की फीस वसूली जा रही है।
कई स्कूलोंं में निशक्त बच्चों के लिए रेलिंग भी नहीं
निजी स्कूलों में आरटीई के मापदंड के अनुरूप निरूशक्त बच्चों के लिए रैंप-रेलिंग की व्यवस्था नहीं है। नगर के कई नामी-गिरामी निजी स्कूल के भवनों में निशक्त बच्चों की जरूरी आवश्यकताओं के लिए यह सुविधा नहीं है। इसके अलावा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए कमोड सिस्टम के शौचालय भी नहीं है। बावजूद इन्हें मान्यता मिली हुई है।
रहवासी मकानों में चल रहे स्कूल
नगर के कई निजी स्कूल ऐसे हैं जो रहवासी मकानों में संचालित किए जा रहे हैं। महज 15 सौ से 2 हजार वर्ग फुट के मकानों में विगत कई वर्षो से प्राथमिक शालाएं संचालित की जा रही है। ऐसे स्कूलों में बच्चों के लिए आरटीई के मापदंड के अनुरूप न ही पर्याप्त कमरे हैं और न कमरों का आकार मापदंड के अनुरूप है। खेल मैदान के लिए भी विद्यार्थियों को तरसना पड़ रहा है।
राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हैं निजी स्कूलों के संचालक
ज्यादातर निजी स्कूलों के संचालक किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए हैं। इससे कई तरह के लाभ हैं। राजनीतिक पहुंच होने की वजह से अधिकारी ऐसे स्कूलों का निरीक्षण कर वास्तविकता जानने का प्रयास नहीं करते। दूसरी ओर शासन से विभिन्न तरह से अनुदान लेने स्कूल के लिए धन बटोरते हैं। ऐसे स्कूलों के विरुद्ध कोई शासकीय सेवारत पालक आवाज उठता है तो उसे राजनीतिक रूप से दबाने का प्रयास किया जाता है।
दुकानों में चल रहे स्कूल
शहर के अभी तक छोटे-छोटे मकानों में स्कूल चलाए जा रहे थे लेकिन अब स्कूल संचालकों और अधिकारियों की मिलीभगत से सटर लगी दुकानों में स्कूलों का संचालन किया जा रहा है। लेकिन इस ओर अधिकारियों द्वारा ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है।

Comments About This News :

खबरें और भी हैं...!

वीडियो

देश

इंफ़ोग्राफ़िक

दुनिया

Tag