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आदिवासी विधायकों के साथ राज्यपाल से मिले कमलनाथ,
सीधी कांड और आदिवासियों पर अत्याचार की दी जानकारी, बोले- राज्यपाल उनकी रक्षा के लिए खुद आगे आए
भोपाल। मध्यप्रदेश के सीधी पेशाब कांड और आदिवासियों पर बढ़ते अत्याचार को लेकर नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह और पीसीसी चीफ कमलनाथ और कांग्रेस के 29 आदिवासी विधायक सोमवार को राज्यपाल मंगूभाई पटेल से मिलने राजभवन पहुंचे। लेकिन 5 विधायकों को ही अंदर जाने की इजाजत दी गई। विधायकों ने राज्यपाल से मिलकर आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार पर सरकार की नाकामी बताई।
राज्यपाल से मुलाकात के बाद पीसीसी चीफ कमलनाथ ने कहा कि रोजाना नए मामले सामने आ रहे हैं। आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार को लेकर राज्यपाल को ज्ञापन दिया है। प्रदेश में लगातार आदिवासियों पर अत्याचार हो रहे है। सीधी की घटना ने प्रदेश को देश भर में शर्मसार किया। हमने राज्यपाल से मुलाकात की है। आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए खुद आगे आएं। राज्यपाल खुद आदिवासी वर्ग से आते हैं। हमने मांग की है कि आगे आकर आदिवासियों की रक्षा के लिए कदम उठाएं। राज्यपाल से मांग की है कि इन तमाम घटनाओं की वो खुद जांच करे। आज नहीं कल पूरी सच्चाई सामने आएगी।
मप्र में आदिवासियों पर सबसे अधिक अत्याचार
कांग्रेस विधायकों ने अपने ज्ञापन में लिखा मध्यप्रदेश देश का ऐसा राज्य है, जहां सबसे बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के नागरिक निवास करते हैं। मध्यप्रदेश के समाज, संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं में आदिवासी समुदाय का उललेखनीय योगदान है। आदिवासी समुदाय मध्यप्रदेश के सामाजिक जीवन का अभिन्न और अति महत्वपूर्ण अंग है । लेकिन, देखने में आ रहा हैं कि भारतीय जनता पार्टी की 18 साल की सरकार में आदिवासी समुदाय के ऊपर अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । भाजपा सरकार में आदिवासी उत्पीडऩ के 30,000 से अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं, जबकि इससे बड़ी संख्या ऐसे मामलों की है जो प्रकाश में नहीं आ सके ।
आदिवासी समुदाय की पीड़ा, वंचना और संघर्ष को आप जैसा संवेदनशील व्यक्ति अच्छी तरह समझ सकता है। लेकिन हमारा दुख तब और बढ़ जाता है जब आदिवासियों पर अत्याचार सत्ताधारी दल के नेताओं के द्वारा या उनके संरक्षण में किए जाते हैं। प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार का आदिवासी विरोधी रवैया इस बात से भी समझा जा सकता है कि आदिवासी कल्याण का बजट राजनीतिक स्वरूप की सरकारी रैलियों पर खर्च कर दिया जाता है। अनुसूचित जनजाति के लोग अपने लिए बनाए गए अजाक थानों में शिकायत कराते हैं, लेकिन उन थानों का बजट भी शासन ने स्वीकृत नहीं किया है। अगर अपराध सामने आता है तो सत्ताधारी लोग उसे दबाने में लग जाते हैं।
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