- (बलिदान दिवस 14 अगस्त पर) भारत रत्न दीजिए अमर बलिदानी 17 वर्षीय शहीद जगदीश प्रसाद वत्स को!

(बलिदान दिवस 14 अगस्त पर)  भारत रत्न दीजिए अमर बलिदानी 17 वर्षीय शहीद जगदीश प्रसाद वत्स को!

जगदीश प्रसाद वत्स की उम्र की क्या थी?मात्र 17 वर्ष,जब ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज में बीएएमएस की पढ़ाई करते हुए तिरंगे के लिए उन्होंने एक नही,दो नही बल्कि तीन गोलियां खाकर देश मे आजादी का बिगुल बजाया था और अपने प्राणों की आहुति दी थी।सच यह है कि जिस उम्र में युवा अपनी पढ़ाई कर बेहतर भविष्य के सपने बुनते है उसी 17 वर्ष की उम्र में छात्र जगदीश प्रसाद वत्स ने भारत मां को आजाद कराने के लिए सीने पर गोलियां खाकर देशप्रेम व बहादुरी का एक इतिहास लिखा था।जो आज भी सवर्ण अक्षरों में अंकित है। इन राष्टृभक्तों में अनेक ऐसे भी थे,जिनकी उम्र खिलौने से खेलने और स्कूल कालेज जाकर अपना भविष्य संवारने की थी परन्तु उन्होने खिलौनो से खेलने या फिर स्कूल कालेजो में जाकर अपना कैरियर बनाने के बजाए भारत माता को आजाद कराने का जोखिम भरा मार्ग चुना था।   17 वर्षीय जगदीश प्रसाद वत्स,जिन्होंने सन 1942 में हरिद्वार के ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज में पढ़ते हुए आजादी का बिगुल बजाया था। कालेज के छात्रों का  नेतृत्व करते हुए 17 वर्षीय जगदीश प्रसाद वत्स ने तिंरगे झण्डे हाथ में लेकर अंग्रेज पुलिस को चुनौती देने का साहस किया था।

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 13 अगस्त सन 1942 की रात्रि में छात्रावास में हुई छात्रो की एक बैठक में 14 अगस्त को तिरंगे फैहराने के लिए सडको पर निकलने और भारत माता की जय,इंकलाब जिन्दाबाद के नारे लगाने के लिए, लिए गए निर्णय को अमलीजामा पहनाते हुए छात्रों का दल 14 अगस्त की सवेरे ही हरिद्वार की सडको पर निकल पडा था। पुलिस की छावनी के बीच भी जब छात्र जगदीश प्रसाद वत्स ने सुभाष धाट पर पहला तिरंगा फैहराया तो अंग्रेज पुलिस की एक गोली उनके बाजू को चीरती हुई निकल गई । धायल जगदीश ने धोती को फाडकर धाव पर बांध लिया और फिर दुसरा तिरंगा फैहराने के लिए डाकधर की तरफ दौड लगा दी। पुलिस की गोली चलने से बाकी छात्र तो तितर बितर हो गए थे ,लेकिन 17 वर्षीय जगदीश तिरंगे फैहराने की जिद पर अडिग रहा और उसने दौडते हुए जाकर दुसरा तिरंगा डाकधर पर फैहरा दिया। वहां भी पुलिस ने गोली चलाई जो जगदीश के पैर में लगी। जगदीश ने फिर पटटी स्टेशन पर पहुंचकर पाइप के रास्ते उपर चढकर तीसरा तिरंगा फैहरा दिया। जैसे ही जगदीश तिरंगा फैहराकर नीचे उतरा तो राजकीय रेलवे पुलिस के इन्सपैक्टर प्रेम शंकर श्रीवास्तव ने उन्हे धेर लिया। जगदीश ने तांव में आकर एक थप्पड इन्सपैक्टर श्रीवास्तव को रसीद कर दिया, जिससे वह नीचे गिर पडा। इन्सपैक्टर ने नीचे पडे पडे ही एक गोली जगदीश को मार दी जो उनके सीने में लगी। तीसरी गोली लगते ही जगदीश मुर्छि्त हो गया। जिन्हे इलाज के लिए देहरादून सेना अस्पताल ले जाया गया।

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 बताते है कि वहां जगदीश को एक बार होश आया था और उनसे माफी मांगने को कहा गया था परन्तु माफी न मांगने पर उन्हे कथित रूप में जहर का इंजेक्शन देकर उनकी हत्या कर दी गई। सहारनपुर जिले के ग्राम खजूरी अकबरपुर निवासी जगदीश वत्स का शव भी पुलिस ने उनके पिता पंडित कदम सिंह शर्मा को नही दिया था।उल्टे दुस्साहसी अंग्रेजो ने जगदीश वत्स को गोली मारने वाले पुलिस इन्स्पैक्टर प्रेम शंकर श्रीवास्तव को पुलिस मैडल प्रदान किया था। लेकिन देश आजाद होने पर प्रथम प्रधान मन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जगदीश वत्स की राष्टृभक्ति व वीरता की प्रंशसा करते हुए एक विजय टृाफी वत्स परिवार को दी थी। जो धरोहर केरूप में आज भी सुरक्षित है। जगदीश वत्स की स्मृति में उनके गांव खजूरी अकबरपुर में एक जूनियर हाई स्कूल है जो स्थापना पचास वर्ष बाद भी हाई स्कूल और इंटर कॉलेज तक नही बन पाया, एक अस्पताल है ,जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से आगे नही बढ़ पाया, एक सडक  है,जो जीर्णशीर्ण हालत में अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है। वही हरिद्वार के भल्ला पार्क में सन्त ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी के सहयोग से शहीद जगदीश वत्स की प्रतिमा लगाई गई,जहां स्थानीय प्रशासन की अनदेखी के कारण अतिक्रमण व गन्दगी के पांव पसार लिए है ।अलबत्ता ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज में उनकी प्रतिमा सम्माजनक रूप मे स्थापित है। इसी कॉलेज प्रतिवर्ष उनकी याद में एक वालीबाल टूर्नामेन्ट भी कराया जाता है।अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स के परिवार में किसी भी आश्रित ने सरकार से स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी पेंशन या अन्य कोई सम्मान या सरकारी सहायता आज तक स्वीकार नही की।

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जबकि जगदीश की शहादत के एक वर्ष के अन्दर उनके माता पिता की मृत्यु हो गई थी और घर में परिवार के नाम पर शहीद जगदीश की 15 वर्षीय छोटी बहन प्रकाशवती,13 वर्षीय छोटी बहन चन्द्रकला,10 वर्षीय छोटी बहन सुरेश वती और मात्र 5 वर्षीय छोटा भाई सुरेश दत्त वत्स रह गए थे। जिनके पालन पोषण की जिम्मेदारी 15 वर्षीय बहन प्रकाश वती पर आन पडी थी तो भी सरकारी सहायता को ठुकरा देना आजादी के बाद की यह एक बडी मिशाल है।फिर भी सरकार चाहती तो शहीद जगदीश वत्स की स्मृति में उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर अंतर्गत ग्राम खजूरी अकबरपुर में पचास वर्षों से चल रहे जगदीश प्रसाद स्मारक विद्यालय को जूनियर हाईस्कूल से  पहले हाई स्कूल और फिर इंटर किया जा सकता है।सही मायनों में जनपद सहारनपुर व हरिद्वार का यह एक मात्र शहीद जगदीश प्रसाद वत्स मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान का हकदार है।क्या मेरी माटी मेरा देश अभियान और आजादी के अमृत महोत्सव के दृष्टिगत केंद्र सरकार या फिर उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की सरकारें इस बाबत पहल कर शहीद जगदीश वत्स को भारत रत्न देगी?या फिर देश के लिए उनकी शहादत यूं ही इतिहास के पन्नो में भूला दी जाएगी।इस पर गहनता से चिंतन करना आवश्यक है।तभी हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते है।



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