पुतिन और शी को पश्चिमी से मतभेद
नई दिल्ली। भारत अगले हफ्ते जी-20 देशों के शिखर सम्मलेन की मेजबानी कर रहा है जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटिश राष्ट्रपति ऋषि सुनक, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सहित दुनिया के तमाम बड़े राष्ट्राध्यक्ष शामिल हो रहे हैं। शिखर सम्मेलन को लेकर उम्मीद थी कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी इसमें हिस्सा हो, लेकिन अब चीन ने कह दिया है कि जिनपिंग बैठक में शामिल होने के लिए भारत नहीं आ रहे हैं। चीनी विदेश मंत्रालय ने बताया कि राष्ट्रपति जिनपिंग की जगह चीन के प्रीमियर ली कियांग जी-20 में हिस्सा लेने के लिए भारत आएंगे। रूस की तरफ से पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने नहीं आ रहे हैं। राष्ट्रपति पुतिन के प्रेस सचिव दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि पुतिन के लिए अभी यूक्रेन में विशेष सैन्य अभियान ही सबसे महत्वपूर्ण है। दुनिया के दो प्रभावशाली नेताओं का जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा न लेना क्या भारत के लिए झटका है? विश्लेषकों का कहना है कि इससे विश्व शक्ति बनने के भारत के प्रयासों को धक्का लग सकता है।

विश्लेषकों का कहना है कि भारत-चीन तनाव को देखकर चीन को यह लगता है कि जी-20 शिखर सम्मेलन में जिनपिंग का स्वागत गर्मजोशी से नहीं होगा। कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि बैठक में जिनपिंग का शामिल न होना पश्चिमी नेतृत्व वाले संगठनों से दूर होने का चीन का एक तरीका है। साथ ही चीन इसके जरिए भारत को भी कहीं न कहीं नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं जो इस बार पूरी तैयारी के साथ शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि चीन जानता है कि जी-20 को सफल बनाने के लिए विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (चीन) का बैठक में शामिल होना जरूरी है। अगर शी बैठक में शामिल होते हैं, तब भारत की मेजबानी में जी-20 शिखर सम्मेलन को सफल माना जाएगा। भारत इस बात को अपनी बड़ी सफलता के तौर पर दिखाएगा जो कि चीन बिल्कुल नहीं चाहता। इसलिए शी जिनपिंग ने भारत न आने का फैसला किया है।
वहीं पुतिन के मामले में विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन की हालत ऐसी है कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ गए हैं।
जी-20 की पिछली बैठकों में भी यूक्रेन का मुद्दा उठ चुका है और पुतिन जानते हैं कि शिखर सम्मेलन में भी यूक्रेन मुद्दा उठेगा और उनकी आलोचना होगी। रूस को लगता है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों के नेताओं की मौजूदगी में उनकी बात नहीं सुनी जाएगी और वे इसलिए भारत नहीं आना चाहते हैं।
ये भी जानिए...................
वहीं जी-20 की पिछली अहम बैठकों में भारत को सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनाने को लेकर काफी मशक्कत करनी पड़ी है। भारत के यह कहने के बावजूद कि जी-20 संघर्ष सुलझाने का मंच नहीं बल्कि आर्थिक मंच है, रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर सदस्य देशों के बीच काफी मतभेद रहा है। भारत के सामने अब बड़ी चुनौती सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीत आम सहमति बनाने और एक संयुक्त बयान जारी कर जी-20 शिखर सम्मेलन को सफल बनाने की है। भारत ने जी-20 बैठक में सदस्य देशों के अलावा 9 ऑब्जर्वर देशों, स्पेन, मॉरिशस, मिस्र, बांग्लादेश, नीदरलैंड्स, सिंगापुर, ओमान और यूएई को बुलाया है लेकिन यूक्रेन को आमंत्रित नहीं किया इस लेकर कनाडा सहित कई सदस्य देश नाराज हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि वे इस बात से नाखुश हैं कि यूक्रेन को जी-20 शिखर सम्मेलन में नहीं बुलाया जा रहा है।