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तमिलनाडु हाईकोर्ट ने दी 215 शासकीय कर्मचारियों को 1 से 10 साल तक की सजा
चेन्नई । मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश पी वेलुमुरूगन ने तमिलनाडु के धर्मपुरी मे 18 आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म और क्रूरता के आरोप में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को सजा सुनाई है। हाईकोर्ट ने 215 सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को 1 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की सजा सुनाई है। पीड़िताओं को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने 5 लाख रूपये सरकार की ओर से तथा 5 लाख रुपये दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों से वसूल करने के आदेश दिए हैं।
तमिलनाडु हाईकोर्ट ने 4 आईएफएस अधिकारियों सहित वन विभाग के 126 कर्मचारियों, 84 पुलिस कर्मियों तथा 5 राजस्व विभाग के कर्मचारियों को सजा सुनाई है। यह प्रकरण 1992 से न्यायालय में चल रहा था। इस मामले का निपटारा 2023 में हाईकोर्ट से हुआ है। तमिलनाडु हाईकोर्ट ने अपने आदेश में तत्कालीन जिला कलेक्टर, जिला पुलिस अधीक्षक और जिला वन अधिकारी पर कड़ी कार्रवाई करने की अनुशंसा की है। तमिलनाडु हाईकोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है।जिसमें शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय की गई है।
1990 में चंदन लकड़ी का कुख्यात तस्कर वीरप्पन को पकड़ने के लिए तमिलनाडु सरकार द्वारा सघन अभियान चलाया गया था। इस दौरान ग्रामीणों और आदिवासियों के साथ पूछताछ के दौरान दुर्व्यवहार, शारीरिक शोषण और प्रताड़ना सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा की गई थी।
20 जून 1992 को चेन्नई से लगभग 293 किलोमीटर दूर वाचथी गांव में चंदन की कटाई करने की सूचना वन विभाग को मिली थी। सरकारी अम्ल और स्थानीय लोगों के बीच में हिंसक झड़प हुई थी। उसके बाद सरकारी अमले ने सामूहिक दुष्कर्म करने और स्थानी लोगों के साथ मारपीट करके उनके मवेशी इत्यादि जला दिए थे इस मामले की सुनवाई हाई कोर्ट में हो रही थी। इस मामले में 155 वन कर्मी, 108 पुलिसकर्मी, छह राजस्व अधिकारी सहित 269 अधिकारी और कर्मचारियों को हाईकोर्ट ने 1 साल से 10 साल तक की सजा सुनाई है वहीं महिलाओं को 10-10 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया है।
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