नई दिल्ली। बैंकों की भागीदारी पर गतिरोध खत्म करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक और बैंक ऑफ इंगलैंड ने आज एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। भारतीय बॉन्डों और डेरिवेटिव बाजार में ब्रिटिश की लंबे समय से भागीदारी चल रह है। अब ब्रिटेन के कई बैंकों के लिए यह बड़ी राहत भरी खबर है। रिजर्व बैंक ने एक बयान में कहा कि एमओयू के जरिये बैंक ऑफ इंगलैंड के लिए एक व्यवस्था तैयार होगी, जिससे ब्रिटेन के वित्तीय स्थायित्व को महफूज रखते हुए वह रिजर्व बैंक की नियामकीय व निगरानी गतिविधियों पर भरोसा करेगा।
एमओयू पर आरबीआई के डिप्टी गवर्नर टी रवि शंकर और बीओई की डिप्टी गवर्नर (वित्तीय स्थायित्व) सारा ब्रीडन ने आज लंदन में हस्ताक्षर किए। जानकारी के अनुसार अक्टूबर 2022 में यूरोपियन सिक्योरिटीज ऐंड मार्केट अथॉरिटी (ईएसएमए) ने कहा था कि वह क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया समेत छह भारतीय क्लियरिंग हाउस की मान्यता खत्म कर देगा, जो सरकारी बॉन्डों और ओवरनाइट इंडेक्स्ड स्वैप के लिए ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म का काम करता है। दरअसल यह फैसला तब लिया गया, जब आरबीआई ने विदेशी इकाइयों को सीसीआईएल के ऑडिट व निरीक्षण की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
हालांकि ईएसएमए के फैसले के बाद बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी ऐसा ही कदम उठाया, जो 30 जून से लागू होना था। जनवरी में सीसीआईएल ने थर्ड कंट्री-सेंट्रल काउंटरपार्टी के तौर पर मान्यता देने के लिए बैंक ऑफ इंगलैंड से संपर्क किया। बाद में ब्रिटेन के वित्त मंत्रालय ने आरबीआई की तरफ से अधिकृत सेंट्रल काउंटरपार्टी को बराबर मानने का फैसला लिया। इस एमओयू पर हस्ताक्षर के बाद अब सीसीआईएल के आवेदन को बैंक ऑफ इंगलैंड की मंजूरी मिलने की संभावना है। यह कदम ब्रिटिश बैंकों मसलन स्टैंडर्ड चार्टर्ड, बार्कलेज और एचएसबीसी को राहत देगा, जो सरकारी बॉन्ड और ओवरनाइट इंडेक्स्ड स्वैप ट्रेडिंग और विदेश से आने वाले निवेश को संभालने में अहम भूमिका निभाते हैं।