- अल नीनो के कारण भारत में इसबार सर्दी हुई कम

अल नीनो के कारण भारत में इसबार सर्दी हुई कम


नई दिल्ली। साल 2023 भारत में मानसून उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा और इसका कारण अल नीनो को बताया जा रहा है। भारतीय मानूसन केवल भारत में होने वाली भौगोलिक प्रक्रिया ही नहीं है, बल्कि यह हिंद महासागर और यहां तक कि प्रशांत महासागर की गतिविधियों से भी प्रभावित होता है। इसके बाद प्रशांत महासागर में हर कुछ साल में दिखने में अल नीनो का प्रभाव मानसून को प्रभावित करे तब हैरान होने की बात नहीं लगती है।

 

Weather Forecast Update; El Nino Effect | Rajasthan Delhi Haryana | इस बार  सर्दी का मौसम छोटा रहेगा, ठंड कम पड़ेगी; फरवरी में ही गर्मी होने लगेगी -  Dainik Bhaskar

जहां भारत में सर्दियों ने दिसंबर के पहले सप्ताह तक भी जोर नहीं पकड़ा है, बताया जा रहा है कि इस साल ठंड की इस पूरी प्रक्रिया पर अल नीनो का प्रभाव होगा। भारत में सर्दी का मौसम बहुत कुछ हिमालय के प्रदेशों में बर्फबारी से प्रभावित होता है, इस पश्चिमी विक्षोभ या वेस्टर्न डिस्टर्बेंस बाधित भी करता है और सर्दियों को बढ़ाने में भी योगदान देता है।  पश्चिम से चलने वाली हवाएं भारत के उत्तर और उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में बारिश का माहौल बनाती हैं, जिससे हिमालय में बर्फबारी होती है और उससे ठंडी हवाएं उत्तर भारत के मैदानी इलाकों को और अधिक ठंडा करने लगती हैं। 

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अल नीनो प्रशांत महासागर में असामान्य रूप से गर्म पानी के जलवायु प्रभाव का नाम है। यह एक स्पेनिश भाषा का शब्द है जो दक्षिण अमेरिका के मछुआरों ने दिया है इसका मतलब छोटा लड़का होता है। इस प्रभाव की वजह से व्यापारिक पवनें कमजोर हो जाती हैं और यह गर्म पानी अमेरिकी महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों की तरफ जाने लगता है। इससे प्रशांत महासागर में चलने वाले हवाएं दक्षिणी की ओर होने जाने लगती है। अल नीनो की वजह से बताया जा रहा है कि इस साल उत्तरी गोलार्द्ध में भीषण गर्मी पड़ी थी। लेकिन भारत में इसका असर नहीं दिखाई दिया क्योंकि इसने प्रभाव दिखाना ही करीब जुलाई के महीने में शुरू किया था जब भारत में मानसून का मौसम चल रहा था। इसकारण इसका असर भारत के मानसून पर तब पड़ा, लेकिन गर्मी पर नहीं पड़ा। पर यूरोप और उत्तरी अमेरिका में इसका असर जरूर दिखा। 

 

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गौर करने वाली बात यह है कि जहां मौसम विभाग का कहना है कि सर्दी के बाकी मौसम में ना केवल न्यूनतम तापमान ज्यादा कम नहीं होगा, बल्कि ठंड का मौसम भी इस साल छोटा ही रहेगा।  दिसंबर के दूसरे सप्ताह में जाकर ठंड का जोर पकड़ने के संकेत मिलना यहीं बताता है।  अल नीनो का असर हर दो से सात साल में होता है। माना जाता है कि यह जलवायु परिवर्तन के कारण होता है। इसके अलावा एक और प्रभाव भी प्रशांत महासागर के इन्हीं इलाकों में होता है जिसे ला नीनो कहते हैं और यह अल नीनो के ठीक विपरीत होता है और भारत में इससे ठंड बढ़कर तीखी हो जाती है। लेकिन अल नीनो ला नीनो का असर की तुलना में ज्यादा बार देखने को मिलता है। 
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