जयपुर । राजस्थान में नए मुख्यमंत्री के रुप में पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा के नाम की घोषणा के साथ ही एक सप्ताह से चल रहा सियासी कयासों का पटाक्षेप हो गया। भजनलाल की राजनीतिक सुरक्षा के लिए दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को उपमुख्यमंत्री बनाने पर भी आलाकमान ने मुहर लगा दी है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के बहुमत के बावजूद मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर हो रही विलंबता ने यह स्पष्ट कर दिया था कि शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया और डॉ. रमन सिंह को संबंधित राज्यों का मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता ।
इन राज्यों में नवनियुक्त मुख्यमंत्री ने स्पट किया है कि इससे भाजपा ने जातिगत समीकरण साधने का प्रयास किया है, लिहाजा अब कांग्रेस को भी जातिगत समीकरण पर ध्यान देना पड़ेगा, तभी लोकसभा चुनाव 2024 में विधानसभा पराजय की भरपाई होगी। कांग्रेस को अपने आदिवासी वोट बैंक को मजबूत बनाना होगा, क्योंकि अब तक दक्षिण राजस्थान ही कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने में असरदार रहता आया है।
भाजपा की इस शानदार जीत के दौर में भी प्रमुख आदिवासी नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीया के गृहजिले बांसवाड़ा में कांग्रेस ने पांच में से चार सीटें जीती हैं, तो मोदी की लहर में भी जब बड़े-बड़े नेता चुनाव हार गए थे, तब भी महेंद्रजीत सिंह मालवीया बागीदौरा से चुनाव जीत गए थे । राजस्थान में गुटबाजी में फंसी कांग्रेस को बाहर निकालने के लिए भी नए असरदार चेहरे की जरूरत है । उधर, वसुंधरा राजे की सत्ता से विदाई के साथ ही राजस्थान से वसुंधरा-गहलोत सियासी युग की विदाई भी हो गई लगती है। बता दें कि कभी पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी और भैरोसिंह शेखावत के बीच भी अशोक गहलोत-वसुंधरा राजे जैसे ही सियासी समीकरण थे। सियासी विश्लेषकों का मानना है कि अब कांग्रेस को भी तीनों राज्यों- छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले नेता प्रतिपक्ष, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष आदि पदों के लिए जातिगत समीकरण को ध्यान में रखते हुए नए चेहरे तलाशने होंगे।