नई दिल्ली । विपक्ष अपने सियासी वजूद को बचाने के लिए पिछले कुछ सालों से लगातार संघर्ष कर रहा है। टुकड़ों-टुकड़ों में कभी छोटी-मोटी सफलता भी मिली। लेकिन 2023 में भी विपक्ष के सामने कई अनसुलझे सवाल शेष रहे। जानकारों के अनुसार बीजेपी के राष्ट्रवाद का मुकाबला करने के लिए तथा मोदी के चहरे का विकल्प तलाशने के लिए विपक्ष को काफी मशक्कत करनी होगी। विपक्ष के सामने सबसे बड़ा अनसुलझा सवाल है कि वह नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी के नैरेटिव को किस तरह काउंटर करे। खासकर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद करने के लिए कुछ करना होगा।
बता दें कि पिछले कुछ सालों में इन दोनों मसलों पर बीजेपी बहुत मजबूत हुई है और आए दिन ऐसी घटनाएं भी हुईं जो इस नैरेटिव को स्थापित रखने में मददगार बनी। अब नए साल की शुरुआत में ही 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी। विपक्ष बीजेपी की इस कोर पिच में कैसे सेंध लगाए इसका सियासी फॉर्म्युला अब तक नहीं खोज पाया है। कभी सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रयोग कर तो कभी अपना राष्ट्रवाद सामने लाकर जरूर इसे काउंटर करने की कोशिश जरुरी हुइ है लेकिन सफलता विपक्ष को नहीं मिली।
चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख की मानें तो अभी की सियासी परिस्थिति में जनमानस के बीच इन दोनों नैरेटिव में जब तक राजनीतिक दल अपनी भी स्वीकार्यता नहीं बढ़ाएंगे तब तक उनके सामने चुनौती बनी रहेगी। 2014 के बाद जब से नरेंद्र मोदी की अगुआई में नई बीजेपी सामने आई तब से देश में चेहरा आधारित चुनाव का नया दौर शुरू हुआ। नरेंद्र मोदी के सामने विकल्प कौन? यह विपक्ष का सबसे अनसुलझा सवाल रहा। ये साल भी विपक्ष ने इसी के जवाब में निकाल दिया। विपक्ष ने 27 दलों का इंडिया गठबंधन भी बनाया तब भी उसमें एक आम चेहरा सामने नहीं ला पाया। चुनाव विश्लेषक आशीष रंजन बताते हैं कि अगर पिछले कुछ सालों की मिसाल देखें तो जिस राज्य में विपक्ष ने विधानसभा चुनाव में मजबूत चेहरा रखा वहां उसे जीत मिली।
विपक्ष ने लेकिन केंद्र में आकर ऐसा नहीं किया है, इसमें वह विफल रहा है। अभी 19 दिसंबर को इंडिया गठबंधन की बैठक में यह मसला उठा और कुछ नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे किया लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। जबकि तमाम आंकड़े बताते हैं कि आजकल वोटर चुनाव में नेतृत्व की स्पष्टता वाले दल की ओर अधिक जाना पसंद करते हैं। ऐसे में विपक्ष के लिए इस अनसुलझे सवाल की तलाश सबसे अधिक है। विपक्ष अब तक बीजेपी के सामने अपना समानांतर अजेंडा भी नहीं रख पाया। न विचारधारा
के रूप में भी अपनी बात को रख पाया। ये दो ऐसे मोर्चे हैं जहां विपक्ष खासकर कांग्रेस उलझा हुआ है। बीजेपी ने हाल के दिनों में संगठन के स्तर पर अभूतपूर्व काम किया है। साथ ही लगातार जमीन-संगठन पर अलग-अलग तरीके से काम करने की मंशा भी दिखाई। जानकारों के अनुसार बीजेपी की ऊर्जा-संगठन की ताकत ने भी देश की राजनीति में पार्टी को आज इस मजबूत स्थिति में खड़ा किया है। विपक्ष पर अक्सर सिर्फ चुनाव के समय जगने का आरोप लगता रहा है। विपक्ष बीजेपी के इस ऊर्जा को किस तरह काउंटर करे? जमीन पर संगठन को किस तरह खड़ा करे? पार्टी मशीनरी को किस तरह विकसित करे? इन तमाम अनसुलझे सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा है लेकिन कोई विपक्षी दल इसका सामना नहीं कर पाया है।