याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उस ज़मीन पर 667 गरीब परिवार 60 से 70 सालों से रह रहे हैं। ब्रह्मपुत्र नदी अपना रास्ता बदलती रहती है और लोगों को ऊँचे स्थानों पर जाना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट असम के ग्वालपाड़ा ज़िले में राज्य सरकार की बुलडोज़र कार्रवाई के ख़िलाफ़ दायर एक याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। याचिका में कहा गया है कि 600 से ज़्यादा परिवारों को हटाने के लिए चलाया गया बुलडोज़र अभियान अदालत के निर्देशों का उल्लंघन है। याचिका में असम सरकार के अधिकारियों के ख़िलाफ़ अवमानना की कार्रवाई का अनुरोध किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने असम के मुख्य सचिव और अन्य को दो हफ़्ते के भीतर जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर असम सरकार ज़मीन को सरकारी बताकर अपना बचाव करती है, तो अदालत का आदेश सरकारी ज़मीन पर लागू नहीं होगा। याचिका में आरोप लगाया गया है कि जून में बड़े पैमाने पर बेदखली और तोड़फोड़ अभियान से 667 से ज़्यादा परिवार प्रभावित हुए थे।
ग्वालपाड़ा ज़िले के आठ निवासियों ने अधिवक्ता आदिल अहमद के माध्यम से एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि व्यक्तिगत सुनवाई, अपील या न्यायिक समीक्षा के लिए पर्याप्त समय दिए बिना ही तोड़फोड़ की कार्रवाई की गई। याचिका में कहा गया है, 'संबंधित अधिकारियों ने बेदखली अभियान को भेदभावपूर्ण तरीके से लागू और संचालित किया... बेदखली और तोड़फोड़ की कार्रवाई मुख्य रूप से अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर की गई, जबकि इसी तरह के मामलों में बहुसंख्यक समुदाय के लोगों को इससे अछूता छोड़ दिया गया।'
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि केवल दो दिन का नोटिस दिया गया और उसके तुरंत बाद तोड़फोड़ की कार्रवाई की गई। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने पूछा, 'आप उच्च न्यायालय क्यों नहीं जाते?' संजय हेगड़े ने कहा कि कई लोग उच्च न्यायालय गए थे और वहाँ भी पुनर्वास को लेकर याचिका दायर की गई थी।
उन्होंने कहा कि अतिक्रमणकारियों को भी कानूनी प्रक्रिया का उपयोग करने का अधिकार है। संजय हेगड़े ने कहा, 'ये 667 गरीब परिवार हैं जो 60 से 70 वर्षों से उस ज़मीन पर रह रहे हैं।' उन्होंने कहा कि ब्रह्मपुत्र समय-समय पर अपना मार्ग बदलती रहती है और लोगों को ऊँचे स्थानों पर जाना पड़ता है।
पीठ ने चेतावनी देते हुए कहा, 'हम नोटिस जारी करना चाहते हैं, लेकिन अगर सरकार यह कहकर इसका बचाव करती है कि यह सरकारी ज़मीन है, तो हम पहले ही कह चुके हैं कि हमारा आदेश सरकारी ज़मीन, सड़कों, सार्वजनिक स्थानों, नदियों और जलाशयों पर किसी भी अतिक्रमण पर लागू नहीं होगा।'
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह कहने के बाद कि दायर याचिका पर नोटिस जारी किया जाएगा, संजय हेगड़े ने यथास्थिति बनाए रखने का अनुरोध किया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'अगर यह सरकारी ज़मीन है, तो यह लागू नहीं होगा। हम अपने फ़ैसले के विपरीत कोई आदेश पारित नहीं कर सकते।'
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर, 2024 के फ़ैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें अदालत ने पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश तय किए थे। इस निर्देश में पहले कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना संपत्ति को गिराने और पीड़ित पक्ष को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिए बिना किसी भी संपत्ति को गिराने पर रोक लगाई गई थी।
याचिकाकर्ताओं के बारे में कहा गया था कि वे पिछले 60 वर्षों से हसिलाबिल राजस्व गाँव में अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं और हाल ही तक किसी भी सरकारी अधिकारी ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी। याचिका में कहा गया है कि 13 जून को, प्राधिकरण ने सभी निवासियों को एक नोटिस जारी कर 15 जून तक निर्माण हटाने का निर्देश दिया था।
याचिका में यह भी बताया गया है कि निवासियों को पर्याप्त समय या सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया और नोटिस मनमाने ढंग से जारी किया गया। कुछ ही दिनों में, अधिकारियों ने बिना कोई नया कारण बताओ नोटिस जारी किए या व्यक्तिगत सुनवाई किए, बड़े पैमाने पर बेदखली और तोड़फोड़ अभियान चलाया।
याचिका में ध्वस्त किए गए घरों, स्कूलों आदि के लिए मुआवज़ा, पुनर्वास और पुनर्निर्माण के माध्यम से अंतरिम राहत के निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था। कई निर्देश पारित करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने नवंबर 2024 के फैसले में स्पष्ट किया कि ये निर्देश सार्वजनिक स्थानों जैसे सड़कों, गलियों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों से सटे या नदी या जल स्रोतों में अनधिकृत संरचनाओं के मामले में लागू नहीं होंगे, सिवाय उन मामलों के जहाँ तोड़फोड़ का अदालती आदेश हो।