नई दिल्ली,। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले की कड़ी आलोचना की, जिसमें यह टिप्पणी की गई थी कि ‘किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए और दो मिनट के सुख के लिए खुद को समर्पित नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘न केवल हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियां ‘समस्याग्रस्त’ है बल्कि फैसले में लागू कानूनी सिद्धांत भी सवालों के घेरे में है।’
जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइंया की पीठ हाईकोर्ट के फैसले पर स्वत: संज्ञान लेकर शुरू की गई सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस ओका ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि निचली अदालत द्वारा आरोपी को दोषी ठहराने के फैसले को हाईकोर्ट द्वारा पलट दिए जाने के आधार संदिग्ध प्रतीत होते हैं, हालांकि उन्होंने कहा कि यह मुद्दा उसके समक्ष नहीं है।
हाईकोर्ट के दो जजों के पीठ ने उस व्यक्ति को बरी कर युवा लड़कियों और लड़कों को यौन इच्छा पर नियंत्रण रखने की सलाह दी थी, जिसे एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के आरोप में दोषी ठहराया गया था। आरोपी और पीड़ित नाबालिग के बीच प्रेम संबंध था। हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम यानी पॉक्सो पर चिंता जाहिर की थी, जिसमें किशोरों के बीच सहमति से किए गए यौन संबंधों को यौन शोषण के साथ जोड़ दिया गया है।