- रामायण का लंका दहन, महाभारत का लक्ष्झागर और मोसाद स्टाइल की जासूसी की कहानियां पोरस-सिकंदर के दौर में भी मौजूद थीं

रामायण का लंका दहन, महाभारत का लक्ष्झागर और मोसाद स्टाइल की जासूसी की कहानियां पोरस-सिकंदर के दौर में भी मौजूद थीं

जासूसों और जासूसी के ऐसे कारनामे, जिन पर यकीन करना मुश्किल है, कभी कहानियों में तो कभी हकीकत में समाज का हिस्सा रहे हैं। काल्पनिक कहानियों में उनकी दिलचस्प भूमिकाओं ने हकीकत में भी उनसे काफी उम्मीदें जगाई हैं। इजराइल के लिए मोसाद इन उम्मीदों पर खरा उतर रहा है। जासूसी अभियानों के कई उदाहरण पुराणों में भी मिलते हैं।पहले पेजर फटे, फिर वॉकी-टॉकी और इसके बाद तो यह सिलसिला ही बन गया। इजराइल-हमास युद्ध की आग इन धमाकों के साथ लेबनान और सीरिया तक पहुंच गई। हालात ऐसे हैं कि पेजर के बाद फोन, मोबाइल और यहां तक ​​कि सोलर पैनल भी फट रहे हैं। बड़ी संख्या में हो रहे इन धमाकों में मरने वालों की संख्या जरूर कम है, लेकिन घायलों की संख्या हजारों में है और धमाकों का खौफ और भी ज्यादा है।

 

 

जब इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद के ऐसे ऑपरेशनों की बात आती है तो बात काफी आगे तक जाती है और फिर मोसाद के कई पुराने मिशन भी याद आ जाते हैं। भारत में भी रॉ खुफिया मिशनों को अंजाम देती रही है, जो अब इतिहास बन चुका है। इतिहास युद्धों और लड़ाइयों की कहानियों से भरा पड़ा है और जब भी युद्ध कौशल का जिक्र होता है, तो जासूसी, गुप्तचर तंत्र इसके प्रमुख अंग रहे हैं। आमतौर पर इसे छल कहा जाता है, लेकिन एक मशहूर कहावत है कि युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है। इसलिए अगर युद्ध जायज है तो जासूसी भी जायज है और अगर हम भारतीय इतिहास के धागे को आगे बढ़ाते हुए पुराणों तक पहुँचते हैं, तो उन कहानियों में भी जासूसी अभियान घटनाओं का प्रमुख हिस्सा रहे हैं।

हनुमान जी की लंका यात्रा

अगर हम सबसे मानक और प्रसिद्ध पौराणिक कथा रामायण को लें, तो हमें इसमें विभिन्न स्थानों पर कई जासूसी और खुफिया मिशन मिलते हैं। हनुमान जी की लंका यात्रा एक बड़ा जासूसी मिशन था। इसके साथ ही हनुमान जी ने गुप्त रूप से रावण के सैन्य बल, शस्त्रागार, खजाने के बारे में पूरी जानकारी हासिल की। ​​उन्होंने इन सभी की कुंडली खंगाली, किले कहाँ स्थित हैं और प्रत्येक द्वार का मुख्य रक्षक कौन है। उन्होंने सबसे पहले किले की रक्षक और लंका के प्रवेश द्वार पर बड़ी सैन्य चौकी पर मौजूद सेनापति लंकिनी का वध किया। इसके अलावा रावण के पुत्र अक्ष कुमार का भी वध किया था। लंका दहन करके हनुमानजी ने रावण के शस्त्रागार को जला दिया था और उसकी सेना का बल काफी कम कर दिया था।

रावण ने अहि-माहि से करवाया था राम-लक्ष्मण का अपहरण

रामायण में ही अहि रावण और महि रावण नामक राक्षसों का जिक्र है, जिन्होंने युद्ध के बीच शिविर से राम-लक्ष्मण का अपहरण कर लिया था। यह रावण द्वारा किया गया एक बड़ा गुप्त अभियान था, जिसमें शत्रु के नेता का उसके घर में घुसकर अपहरण किया गया था। रावण के इस बड़े कदम का राम की सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। इसके लिए हनुमानजी समुद्र के रास्ते पाताल गए। यहां उनका सामना अहि रावण और महि रावण के अंगरक्षकों से हुआ।

 

यह कोई और नहीं बल्कि मकरध्वज था, जिसके जैविक पिता हनुमानजी थे। जब दोनों का आमना-सामना हुआ तो युद्ध के दौरान ही मकरध्वज को अपने पिता के बारे में पता चल गया। इस तरह शत्रु का सबसे बड़ा विश्वासपात्र उसकी सेना में आ गया। मकरध्वज ने हनुमान को अहि रावण और महि रावण के गुप्त पूजा स्थल की जानकारी दी। हनुमान वहां पहुंचे जहां अहि-माही पाताल देवी की पूजा कर रहे थे और राम-लक्ष्मण की बलि देने की तैयारी कर रहे थे। हनुमान ने चुपके से माता की मूर्ति को वहां से हटा दिया और खुद मूर्ति बनकर खड़े हो गए। जैसे ही अहि-माही ने कहा, बलि स्वीकार करो देवी, हनुमान ने दोनों की गर्दन मरोड़ दी।

महाभारत का लाक्षागृह भी एक गुप्त अभियान था, जो विफल हो गया

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अगर महाभारत की बात करें तो यह पौराणिक युग के सबसे भीषण युद्ध की कहानी है। गुप्त अभियानों का अस्तित्व इस कहानी का अहम हिस्सा है। महाभारत में लाक्षागृह की घटना एक बड़े जासूसी अभियान के रूप में सामने आती है। पांडव वारणावत गांव में शिव मंदिर की स्थापना करने और वसंत ऋतु में लगने वाले बड़े फागुन मेले को देखने जा रहे थे। यह उनका एक महीने का विश्राम दौरा भी था। आमतौर पर हर साल धृतराष्ट्र खुद इस मेले का उद्घाटन करने जाते थे, लेकिन इस बार शकुनि ने उन्हें यह कहकर धोखा दिया कि अब युधिष्ठिर युवराज हैं, इसलिए उन्हें एक राजा की जिम्मेदारी और कर्तव्य भी समझने होंगे। इस तरह उसने पूरे पांडव परिवार को वारणावत भेजने की योजना तैयार की।

क्या थी शकुनि की योजना?

शकुनि ने छह महीने पहले वारणावत में पांडवों के रहने के लिए एक छोटा लेकिन भव्य भवन बनाने की योजना बनाई थी। उसने अपने ही एक एजेंट पुरोचन को ठेकेदार बनाकर धृतराष्ट्र के पास भेजा, जिसे इसका टेंडर भी मिल गया। फिर पुरोचन ने भवन बनाने के लिए जूट, लाख, पटसन, घी जैसी ज्वलनशील सामग्री का इस्तेमाल किया। इसके अलावा उसने भवन में अपने लोगों को नौकर के तौर पर रखा। इस पूरी घटना को महाभारत काल की एक बड़ी गुप्त साजिश के तौर पर देखा जाता है, जिसकी तैयारियां महीनों पहले से की जा रही थीं। योजना थी कि लाख के महल में कुंती समेत पांडवों को जलाकर भस्म कर दिया जाए।

लेकिन विदुर शकुनि के खेल को समझ चुके थे

हालांकि जिस तरह से शकुनि की चाल को इतनी सटीकता से नाकाम किया गया, वह भी इसके जवाब में एक बड़ी कूटनीतिक चाल थी। शास्त्रों में इसे विदुर नीति कहा गया है। विदुर महाभारत के मुख्य षड्यंत्रकारी थे।

 

विदुर की पांच गुप्त पहेलियां

विदुर को जासूसों से पूरी साजिश का पता चल गया था, लेकिन वे इसके पीछे के चेहरे को पहचानना चाहते थे। इसलिए उन्होंने पांडव परिवार को वर्णावत जाने से नहीं रोका, बल्कि वे युधिष्ठिर को आगाह करना चाहते थे। उन्हें ऐसा कोई मौका नहीं मिल रहा था, जिसमें वे युधिष्ठिर को इस बारे में बता सकें, इसलिए आखिरी दिन जब पांडव वर्णावत के लिए निकलने वाले थे, तो उन्होंने कौरवों और पांडवों से पहेलियां खेलवाईं।

इस दौरान उन्होंने युधिष्ठिर को कोड वर्ड में पांच बातें बताईं।

1. यह अमलतास के खिलने का मौसम है और जब यह खिलता है, तो ऐसा लगता है कि जंगल में आग लग गई है।

2. लेकिन जंगल की आग से कौन बचता है? वही जो बिल में रहता है।

3. अगर अमावस्या की रात है, तो कैसा उजाला?

4. लेकिन पहले सुबह का उजाला तो देखो। 5. सब पुराना छोड़ो, नए की ओर बढ़ो। (महाभारत, आदिपर्व, 135.10) दहन वंचयत्वयोग्निः, पर्वतो वंचयेत पातन्।
अन्धे नादति मातंगे, शरदः, शीघ्र मगतः। (महाभारत, आदिपर्व, 142.7) येनारण्ये त्वमग्निष्टं पाषाणे पतितं वने।
चरणं कंटकैरयुक्तं प्रज्ञाः संप्रक्षिपेत प्रियाः। (महाभारत, आदिपर्व, 142.8)

(वन में आग से बचो, गिरते हुए पहाड़ से बचो, अंधे हाथियों के बीच में मत फंसो और शरद ऋतु के आगमन को जल्दी पहचानो, यदि जल में रहोगे तो कोई शत्रु तुम्हें हानि नहीं पहुंचा पाएगा, न अग्नि तुम्हें जला पाएगी और न सूखी लकड़ी जैसे खतरे तुम्हें प्रभावित कर पाएंगे, जो तुम्हें मार्ग में या वन में फंसे हुए, विनाश से घिरे हुए बचा ले, वही धर्म को जानता है और समय रहते उसे पहचान लेता है)

जब पांडव वारणावत पहुंचे तो युधिष्ठिर और अर्जुन सोचने लगे कि विदुर काका ने चलते-चलते ये पहेलियां क्यों सुलझाईं? युधिष्ठिर ने कहा, मुझे नहीं पता कि वे अभी क्या कह रहे हैं, लेकिन आज से हम पांचों में से एक भाई हर रात अवश्य जागेगा। इस तरह 8 दिन बीत गए। वारणावत गांव के लोग प्रतिदिन अपने राजकुमार से मिलने आते और उसके लिए उपहार लाते। एक दिन एक मजदूर हाथ में पिंजरा लेकर आया जिसमें एक चूहा था। यह देखकर अर्जुन को विदुर का प्रश्न याद आ गया कि जंगल की आग से कौन सुरक्षित रहता है, चूहा, क्योंकि वह बिलों में रहता है।

इस तरह पांडवों की जान बच गई

अब पांडव समझ चुके थे कि उन्हें इसी महल में जलाकर मारने की योजना थी। तब उस मजदूर ने इशारे में बताया कि वह विदुर का आदमी है और सुरंग खोदना शुरू कर दिया। अब पांडवों को पूरी साजिश और विदुर नीति की एक-एक बात समझ में आ गई थी। योजना यह थी कि पुरोचन अमावस्या की रात को भवन में आग लगा देगा, लेकिन पांडवों ने एक दिन पहले ही लाक्षागृह में आग लगा दी और सुरंग के रास्ते सुरक्षित स्थान पर भाग निकले। जाने से पहले उन्होंने अपने आभूषण और कपड़े उसी महल में छोड़ दिए। पुरोचन भी आग में जलकर मर गया और एक बूढ़ी भीलनी महिला भी अपने चार बेटों के साथ जलकर राख हो गई। सभी ने सोचा कि पांडव मारे गए।

जरासंध का वध, कृष्ण की कूटनीति

महाभारत में जरासंध का वध एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी और यह एक बड़ा खुफिया ऑपरेशन भी था। कृष्ण ने जरासंध को 16 बार हराया था। जरासंध हर साल द्वारका पर आक्रमण करता था, इसके लिए वह राक्षसों, क्रूर राजाओं और अत्याचारी योद्धाओं का पूरा गठबंधन तैयार करता था। हर बार कृष्ण जरासंध को छोड़कर बाकी सभी को मार देते थे। इस तरह वह छल से अपने सभी शत्रुओं को एक जगह इकट्ठा कर 16 साल तक उनका वध करता रहा।

श्रीकृष्ण-अर्जुन और भीम भेष बदलकर मगध पहुंचे

जरासंध को मारने के लिए कृष्ण, अर्जुन और भीम ब्राह्मण का वेश धारण करके मगध पहुंचे। उन्हें कोई पहचान नहीं पाया। पहले उन्होंने साधुओं के वेश में शहर में घूमकर पूरे मगध की संरचना को समझा, इसके साथ ही जहां-जहां जरासंध को मदद मिल पाती, उन राजाओं को या तो मार दिया जाता या बेहोश कर दिया जाता। जरासंध ने कुश्ती का आयोजन किया था। कृष्ण ने पुष्प-माली का वेश धारण कर सभी अतिथि राजाओं को फूल भेजे। ये फूल मादक थे और इन्हें सूंघते ही राजा नशे में झूमने लगते थे। इसके बाद भीम ने जरासंध को कुश्ती में चुनौती दी और कृष्ण का संकेत पाकर उसके दो टुकड़े कर दिए।

जयद्रथ का भी कूटनीति से वध

जयद्रथ का भी महाभारत युद्ध के दौरान कूटनीति से वध किया गया था। उसके पिता ने जयद्रथ को श्राप दिया था कि जो भी जयद्रथ का सिर काटकर जमीन पर गिराएगा, उसका सिर बुरी तरह फट जाएगा। जब अर्जुन ने जयद्रथ पर बाण चलाया तो कृष्ण ने कहा कि ऐसा बाण मारो कि उसका सिर उसके पिता की गोद में गिरे। अर्जुन ने वैसा ही किया। उसने जयद्रथ का सिर काट दिया, लेकिन वह जयद्रथ के पिता की गोद में गिरा। अपने बेटे का कटा सिर देखकर वह खुद को रोक नहीं पाया और गलती से उसे जमीन पर गिरा दिया। इस तरह जयद्रथ और उसके पिता दोनों मारे गए।

चाणक्य के अर्थशास्त्र में जासूसी का विज्ञान समाहित है

पौराणिक काल से प्राचीन इतिहास की ओर जाएं तो उस काल में जासूसी गतिविधियां खूब देखने को मिलती हैं। नंद वंश, मौर्य वंश, गुप्त काल, शुंग वंश जैसे काल में जब राजतंत्र का शासन था,

 

पोरस के जासूसों ने सिकंदर को पहुंचाया नुकसान

सप्त सिंधु क्षेत्र के राजा पोरस और तक्षशिला के राजा अम्भी के बीच समुद्री व्यापार को लेकर दुश्मनी थी। विश्व विजय का सपना लेकर जब सिकंदर भारत आया तो उसका सबसे पहले सामना अम्भी से हुआ। सिंधु और झेलम नदियों के विशाल विस्तार के कारण वह दूसरी ओर से भारत नहीं आ पा रहा था। तब अम्भी ने उसे गुप्त रूप से सिंधु नदी पार कराई, लेकिन अब आगे बढ़ने पर झेलम नदी फैली हुई दिखाई दे रही थी, जो कहीं उथली तो कहीं समुद्र जितनी गहरी थी। कई महीनों की मशक्कत के बाद सिकंदर किसी तरह कबीलों के बीच से होते हुए झेलम पार करने में कामयाब हो गया, लेकिन उसके कई सैनिक इन जंगलों में मारे गए।

क्या कहते हैं इतिहासकार?

एक यूनानी इतिहासकार डायोडोरस ने भारत को सपेरों का देश कहा है, क्योंकि सिकंदर को इस खतरे का अंदाजा नहीं था। कई सैनिक जंगलों में जहरीले सांपों के काटने से मारे गए। फिर जब ये लोग आगे बढ़े तो पोरस के साथियों और कबीलों के सरदारों ने जो गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे, सेना पर ज़हरीले तीर चलाए. ये तीर कम घातक थे, लेकिन इनसे सैनिक इस तरह घायल हो गए कि सैनिकों में बिल्कुल भी ताकत नहीं बची. पोरस की हार का एक कारण यह भी था कि उसके कई सैनिक मलेरिया जैसे बुखार का शिकार हो गए थे. इतिहासकार ईएडब्ल्यू बैज लिखते हैं कि झेलम के तट पर सिकंदर को सबसे बड़ी क्षति ये हुई कि उसका प्रिय घोड़ा मारा गया और इससे सिकंदर काफी कमज़ोर हो गया. वो बताते हैं कि सिंधु और झेलम को पार करने में आम्भी ने सिकंदर की मदद ज़रूर की थी,

 

 

 लेकिन उसे भी ये नहीं पता था कि उसकी सेना के अधिकारियों में पोरस के लोग भी थे, जिन्होंने सेना को दलदली जंगल के रास्तों की ओर मोड़ दिया. जहां जंगली कीड़े सैनिकों को बीमार कर देते थे. सिकंदर के सैनिक सिर्फ़ सैनिकों से ही नहीं, बल्कि सांपों, बिच्छुओं और कीड़ों से भी लड़ते थे. उन्हें हर कदम पर ज़हरीले बिच्छुओं और सांपों का सामना करना पड़ता था. अगर वे इनसे बच जाते तो बाकी काम मधुमक्खियां और मच्छर कर देते। सैनिक भारत की कभी गर्म तो कभी ठंडी जलवायु का सामना नहीं कर पाते थे। पोरस के जासूस ऐसी तकनीकें इस्तेमाल करते थे जो देखने में तो सरल लगती थीं लेकिन वास्तव में बहुत जटिल थीं। यहां तक ​​कि खुद सिकंदर भी पोरस से बचकर भारत से ग्रीस लौटते समय एक अज्ञात तीर से घायल हो गया और फिर कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई।

देवकीनंदन खत्री की चंद्रकांता के जासूस

ये तो इतिहास की बातें थीं। देवकीनंदन खत्री हिंदी साहित्य में रहस्यमयी कहानीकार रहे हैं, जिन्होंने प्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता संतति लिखा था। हिंदी साहित्य के इतिहास में यह ऐसी कृति है, जिसे पढ़ने के लिए लोगों ने बड़े पैमाने पर हिंदी पढ़ना सीखा। छद्म जासूसी अभियान इस उपन्यास के केंद्र में है। राजा शिवदत्त की विष कन्याओं में एक विष कन्या पात्र है जो एक अंगूठी पहनती है, जिसका पत्थर जहरीला होता है। अगर कोई दुश्मन ऐसा हो जिसे जिंदा रखने के साथ-साथ नशे में भी रखना हो तो विष कन्या पहले उसे अपने जाल में फंसाती और फिर धीरे-धीरे अंगूठी के पत्थर को शरीर के किसी अंग से छूती।

 

 

 ऐसा होने पर उस जगह पर एक बड़ा फोड़ा उभर आता और दुश्मन पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो जाता। इसके अलावा बद्रीनाथ और सोमनाथ चुनारगढ़ के महारथी हैं जो अपना रूप बदलने, सेना में घुसकर युद्ध का रुख मोड़ने, दुश्मन के राज्य में जाकर रहस्य जुटाने में माहिर थे। कुल मिलाकर जासूसों और जासूसी के जिन कारनामों पर यकीन करना मुश्किल होता है, वे कभी कहानियों में तो कभी हकीकत में समाज का हिस्सा रहे हैं। काल्पनिक कहानियों में उनकी दिलचस्प भूमिकाओं ने हकीकत में भी उनसे काफी उम्मीदें जगाई हैं। इजरायल के लिए मोसाद इन उम्मीदों पर खरा उतर रहा है।

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