- कारगिल का ऐतिहासिक मार्ग विलुप्त होने की कगार पर, ग्लेशियल झील बन रही खतरा

कारगिल का ऐतिहासिक मार्ग विलुप्त होने की कगार पर, ग्लेशियल झील बन रही खतरा

कारगिल में बोटकोल दर्रा है। जिसका ऐतिहासिक महत्व है। लेकिन अब यह लामो ग्लेशियर से बनी ग्लेशियल झील से खतरे में है। इस झील का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिकों ने यहां ऑटोमेटिक टाइम लैप्स कैमरा सिस्टम लगाया है, ताकि इसका अध्ययन किया जा सके। ऐसी झीलों के कारण केदारनाथ, सिक्किम और नेपाल में आपदाएं आई थीं।

कारगिल का किचूर गांव। यहां से कुछ दूरी पर नागमीथोंग नाला का कलापारी कैंप स्थित है। इसकी ऊंचाई करीब 12,800 फीट होगी। यहां 20-24 अगस्त 2024 के दौरान आईआईटी रुड़की में असिस्टेंट प्रोफेसर सौरभ विजय के साथ आईआईएसईआर-पुणे की एसोसिएट प्रोफेसर अर्घा बनर्जी और इसी संस्थान के रिसर्च स्कॉलर कृष्णानंद जे. भी थे। इसके अलावा सात अन्य वैज्ञानिक भी इस टीम का हिस्सा थे। इसका उद्देश्य ग्लेशियरों और उनसे बनी ग्लेशियल झीलों का अध्ययन करना था। इनका साथ पानीखर गांव के लोगों और उनके घोड़ों ने दिया।

सौरभ विजय, अर्घा बनर्जी और कृष्णानंद ने बातचीत की। सौरभ ने बताया कि हमारी टीम ने घाटी के ग्लेशियर, ग्लेशियल झील, ग्लेशियर से पिघलते पानी और स्थानीय जलवायु का अध्ययन किया। घाटी में इन सभी का एक साथ अध्ययन करने से विज्ञान की समझ बेहतर होती है। इसलिए लामो ग्लेशियर के पास एक ऑटोमैटिक टाइम लैप्स कैमरा सिस्टम लगाया गया, जो साल भर हर मौसम में ग्लेशियर और उसके पिघलने से बनी झील पर नज़र रख सकता है।

यह वो ग्लेशियल झील है जो लामो ग्लेशियर के पिघलने और रिसने से बनी है। इसमें आप बर्फ के टुकड़े देख सकते हैं।

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पिछले तीन दशकों में इस झील का आकार 25 गुना बढ़ गया है। इस झील का क्षेत्रफल करीब 5 लाख वर्ग मीटर है। इसमें करीब 500 करोड़ लीटर पानी है। इतना पानी जिससे पूरे लद्दाख की छह महीने की ज़रूरतें पूरी हो सकती हैं। लेकिन इतना पानी और इतनी ऊंचाई पर बढ़ती झील एक खतरा भी है।

इस झील के फटने और इससे अचानक बाढ़ आने का खतरा

खतरा यह है कि यह झील कभी भी ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) का कारण बन सकती है। ऐसा ही खतरा संभव है जो 2013 में केदारनाथ घाटी, 2023 में सिक्किम और हाल ही में नेपाल में हुआ था। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) भारतीय हिमालय में ऐसी ग्लेशियल झीलों की पहचान करने में लगा हुआ है, जो भविष्य में खतरनाक साबित हो सकती हैं।

कश्मीर और लद्दाख को जोड़ने वाला खतरनाक रास्ता

ग्लेशियोलॉजिस्ट अर्घा बनर्जी ने बताया कि इस झील के पास उपकरण लगाने और वहां जाने के दौरान कई स्थानीय चरवाहे और लोग मिले। साथ ही रोमांच की तलाश में निकले कुछ हाइकर्स भी मिले। ये सभी बोटकोल दर्रे से होते हुए चालोंग और वारवान घाटी की यात्रा कर रहे थे। बोटकोल दर्रा झील से करीब सौ मीटर ऊपर से गुजरता है।

यह दर्रा लामो ग्लेशियर से होकर गुजरता है। सदियों से चरवाहे, यात्री और सेनाएं कश्मीर से लद्दाख आने के लिए इसी रास्ते का इस्तेमाल करती रही हैं। कृष्णानंद ने बताया कि हमारी टीम ने देखा कि यह रास्ता बेहद खतरनाक है। साथ ही झील के विस्तार के कारण इस रास्ते पर खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

पिछले साल सिक्किम और अब नेपाल में हादसा

पिछले साल सिक्किम में भी ऐसी ही एक ग्लेशियल झील फटी थी। हाल ही में नेपाल में शेरपाओं का एक गांव ऐसी ही आपदा का शिकार हुआ। इससे सरकारों और लोगों का ध्यान इस आपदा की ओर गया। वैज्ञानिकों ने पहले ही अंदाजा लगा लिया था कि हिमालय में ग्लेशियल झीलों के टूटने और फटने से अचानक बाढ़ आने का खतरा बढ़ रहा है।

GLOF के कई कारण हो सकते हैं

ग्लेशियल झीलों के टूटने का कारण ग्लोबल वार्मिंग हो सकता है। भूस्खलन हो सकता है। हिमस्खलन हो सकता है या ऊपर पहाड़ से पत्थरों का गिरना हो सकता है। या फिर झील की दीवार अपने ही वजन में वृद्धि के कारण टूट सकती है। इसलिए हमारे वैज्ञानिक लगातार ऐसी ग्लेशियल झीलों की पहचान करने में लगे हुए हैं, जो निचले इलाकों के लिए खतरा बन सकती हैं। इस टीम का मानना ​​है कि वैज्ञानिकों, अकादमिक और सरकारी संस्थानों को स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले बदलावों को जल्दी से जल्दी भांप लिया जाए और इससे होने वाले खतरों से बचा जा सके।

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