पीके बार-बार दावा कर रहे हैं कि यह पार्टी अलग होगी, दूसरी पार्टियों जैसी नहीं। यह कुछ वैसा ही है जैसा अरविंद केजरीवाल दिल्ली में आम आदमी पार्टी की शुरुआत के समय कहा करते थे। क्या पीके बिहार में केजरीवाल जैसा करिश्मा दिखा पाएंगे?
चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर जन सुराज पार्टी शुरू करने के लिए तैयार हैं। पीके 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर जन सुराज के सक्रिय राजनीति में प्रवेश की औपचारिक घोषणा करेंगे। पीके बार-बार दावा कर रहे हैं कि यह पार्टी अलग होगी, दूसरी पार्टियों जैसी नहीं। वह कई मुद्दों पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से अलग राह पर भी नजर आ रहे हैं।
यह कुछ वैसा ही है जैसा अरविंद केजरीवाल दिल्ली में आम आदमी पार्टी की शुरुआत के समय कहा करते थे। आम आदमी पार्टी ने अपनी स्थापना के बाद पहले ही चुनाव में गठबंधन के जरिए ही सही, सत्ता के शिखर का स्वाद चखा था। अब सवाल यह है कि क्या पीके बिहार में केजरीवाल जैसा करिश्मा दिखा पाएंगे?
नीतीश-तेजस्वी से अलग राह पर पीके
नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू बिहार में अपनी सरकार के दौरान किए गए कामों को गिना रही है, सुशासन को उपलब्धि बता रही है। जेडीयू डबल इंजन के साथ तेजी से विकास के वादे के साथ जनता के बीच जा रही है। तेजस्वी यादव रोजगार पर भी फोकस कर रहे हैं। तेजस्वी आरजेडी की महागठबंधन सरकार के दौरान की गई भर्तियों को अपनी उपलब्धि के तौर पर जनता के बीच ले जा रहे हैं, लेकिन शराबबंदी जैसे मुद्दों पर राजनीतिक दल मुखर होने से बच रहे हैं। कई बड़े मुद्दों पर पीके नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से अलग राह पर चलते दिख रहे हैं।
1- शराबबंदी
पीके शराबबंदी को लेकर मुखर हैं। उन्होंने कहा था कि सत्ता में आने के एक घंटे में शराबबंदी खत्म कर देंगे और अब उन्होंने कहा है कि सरकार बनने के 15 मिनट में शराबबंदी खत्म कर देंगे। जब शराबबंदी का फैसला लागू हुआ था, तब राज्य में नीतीश कुमार की अगुवाई में महागठबंधन की सरकार थी। इसके बाद नीतीश कुमार बीजेपी के साथ गए, महागठबंधन में शामिल हुए और फिर दोबारा बीजेपी के साथ गए लेकिन शराबबंदी का फैसला लागू रहा। भाजपा हो या राजद, हर पार्टी महिला वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए शराबबंदी पर खुलकर बोलने से बच रही है, लेकिन पीके मुखर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि शराबबंदी खत्म करने की बात पर मुझसे कहा गया कि महिलाएं वोट नहीं देंगी। अगर उन्हें वोट नहीं देना है तो न दें, लेकिन मैं कुछ गलत नहीं कहूंगा।
2- रोजगार गारंटी
बिहार में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। तेजस्वी यादव ने 2020 के विधानसभा चुनाव में भी इसे मुद्दा बनाया और 10 लाख रोजगार का वादा करते हुए यात्रा निकाली। राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और महागठबंधन बहुमत के आंकड़े के करीब पहुंच सका, तो इसके पीछे रोजगार पर वादे की भूमिका मानी गई। तेजस्वी इस बार भी रोजगार को मुद्दा बना रहे हैं और सत्ता में आने के बाद खाली पदों को भरने का वादा कर रहे हैं। एनडीए भी नीतीश सरकार में हुई भर्तियों को अपनी उपलब्धि के तौर पर जनता के बीच ले जा रही है। पीके ने भी इस पर फोकस किया है।
प्रशांत किशोर ने कहा कि 5 लाख और 10 लाख नौकरियों का वादा लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश है और कहा कि बिहार में स्वीकृत सरकारी पद सिर्फ 23 लाख हैं जो आबादी का करीब दो फीसदी है. 98 फीसदी लोगों को यह विकल्प नहीं मिल सकता. उन्होंने विकसित देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि तरक्की का रास्ता सरकारी नौकरी से नहीं बल्कि शिक्षा और पूंजी की उपलब्धता से बनता है. नॉर्वे, स्वीडन जैसे देशों में लोग नौकरी के लिए रेलवे की परीक्षा नहीं देते, उन्हें अच्छी शिक्षा और रोजगार के लिए आसान पूंजी मिल जाती है. जन सुराज का यही मॉडल बिहार में भी लागू होगा और 10 अर्थशास्त्री इस पर काम कर रहे हैं.
3- कारखानों का पुनरुद्धार
नीतीश कुमार ने उद्योगों को लेकर कहा था कि हमारे यहां समुद्र नहीं है. उन्होंने यह भी कहा है कि बिहार में सिर्फ आलू और बालू बचा है, बाकी झारखंड चला गया है. इस पर प्रशांत किशोर ने नीतीश पर कटाक्ष करते हुए कहा कि तेलंगाना, हरियाणा में कौन सा समुद्र है जो विकास दर के मामले में बिहार से बेहतर स्थिति में हैं. पीके चीनी मिलों के बंद होने पर सवाल उठाते हुए यह भी कहते हैं कि गन्ने के खेत बिहार में ही हैं. बंद पड़े कारखानों को फिर से चालू करने पर भी पीके का फोकस है।
4- हर क्षेत्र से उम्मीदवार
अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आम आदमी पार्टी की तरह पीके का फोकस भी हर क्षेत्र से लोगों को पार्टी से जोड़ने और उन्हें चुनाव में उतारने पर है। पीके ने विधानसभा चुनाव में 40 महिलाओं और 40 मुसलमानों को टिकट देने का ऐलान किया है। पीके पूर्व अफसरों से लेकर जज, शिक्षाविद और मजदूरों तक हर वर्ग से उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं। वह यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि जन सुराज हर क्षेत्र, सभी जातियों और वर्गों, सभी समाज के लोगों की पार्टी है।
5- शिक्षित वर्ग पर फोकस
पीके का फोकस बुद्धिजीवी वर्ग पर है। पीके ने हाल ही में पटना में बुद्धिजीवी वर्ग के साथ बैठक की और कहा कि नेताओं ने यह भ्रांति फैला दी है कि राजनीति में जाति और धनबल की जरूरत होती है। समाज का एक बड़ा वर्ग जो शिक्षित और अच्छे चरित्र का है, वह राजनीति से दूरी बनाए हुए है।जो लोग सक्षम हैं और समाज में कुछ अच्छा करने की सोचते हैं, वे इसी भ्रम के कारण राजनीति से दूरी बनाए रखना चाहते हैं। पीके यह भी कह रहे हैं कि युवाओं को लाओ, जन सुराज अपने खर्च पर हर स्तर पर चुनाव लड़ेगा।