इस समय डॉलर का रूपांतरण मूल्य 84.94 रुपये तक पहुंच गया है। पिछले पांच सालों में डॉलर के मुकाबले रुपया करीब बीस फीसदी कमजोर हुआ है। ऐसे में पांच साल पहले पढ़ाई के लिए विदेश गए लोगों पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है।
डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने का सीधा असर अब लोगों पर पड़ रहा है। खासकर उन अभिभावकों पर आर्थिक बोझ काफी बढ़ गया है जो अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए विदेश भेजते हैं। कर्ज लेकर बच्चों को विदेश भेजने वालों को अतिरिक्त धन का इंतजाम करना पड़ रहा है। इसके साथ ही रुपये के मूल्य में गिरावट के कारण विदेश में रहने और खाने-पीने का खर्च भी बढ़ गया है। ऐसे में रहने और खाने-पीने का खर्च भी दस फीसदी तक बढ़ गया है। वहीं दूसरी ओर उद्योग जगत पर भी इसका सीधा असर पड़ रहा है। विदेश से कच्चा माल मंगवाने वाले कारोबारियों को भी अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ रही है।
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वर्तमान में डॉलर का रूपांतरण मूल्य 84.94 रुपये पर पहुंच गया है। पिछले पांच साल में डॉलर के मुकाबले रुपया करीब बीस फीसदी कमजोर हुआ है। ऐसे में पांच साल पहले पढ़ाई के लिए विदेश गए लोगों को आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है। वर्ष 2020 में डॉलर का रूपांतरण मूल्य करीब 70 रुपये था। इसके अलावा फीस में नियमित बढ़ोतरी और रहना-खाना भी महंगा हो गया है। इन हालातों में पूरी पढ़ाई के लिए तय बजट पहले ही खर्च होने से अतिरिक्त पैसे का इंतजार करना पड़ रहा है।
हरदोई जिला अस्पताल में तैनात डॉ. जितेंद्र श्रीवास्तव का बेटा जॉर्जिया से सीधे एमबीबीएस कर रहा है। डॉ. जितेंद्र ने बताया कि बेटे को वर्ष 2019 में यूक्रेन भेजा गया था। वहां युद्ध शुरू होने के कारण उसे जॉर्जिया में एडमिशन कराना पड़ा। यूक्रेन भेजते समय डॉलर का मूल्य 72 रुपये था। वहीं, अब डॉलर के मुकाबले रुपया और कमजोर होने से फीस और अन्य खर्चों के लिए ज्यादा पैसे की जरूरत है। ऐसे में बीस लाख रुपये का लोन टॉप-अप हो गया है। फीस के अलावा हर साल करीब डेढ़ लाख रुपये खाने-पीने और रहने पर खर्च हो जाते हैं। अब पढ़ाई बीच में नहीं छोड़ सकते, इसलिए अतिरिक्त लोन लेना पड़ा।
कानपुर रोड निवासी चंद्रशेखर अग्निहोत्री की बेटी स्नेहा एमबीबीएस करने रूस गई है। पढ़ाई और अन्य खर्च के लिए भेजे गए पैसे को डॉलर से रूबल में बदला जाता है। वर्तमान में एक डॉलर की कीमत करीब 85 रुपये है। कन्वर्जन फीस मिलाकर एक डॉलर की कीमत करीब 86 रुपये है। जबकि जब उसे पढ़ने के लिए भेजा गया था, तब एक डॉलर की कीमत 75 रुपये थी। इस तरह अब तक सालाना खर्च करीब दो लाख रुपये बढ़ गया है। नियमित फीस और चार्ज बढ़ोतरी के साथ ही रुपये की कीमत में गिरावट के कारण ही 20 से 25 फीसदी अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है।
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विदेश में पढ़ने वाले बच्चों के लिए कंसल्टेंसी देने वाले अमन पांडे ने बताया कि पहले बच्चे 20 लाख रुपये में विदेश से एमबीबीएस कर लेते थे। वहीं, अब 30 लाख रुपये तक खर्च हो रहे हैं। कंसल्टेंसी के लिए आने वाले कई अभिभावक अब बढ़े खर्च के कारण अपने बच्चों को विदेश में पढ़ाई के लिए नहीं भेज पा रहे हैं। युद्ध के कारण यूक्रेन जाने का विकल्प भी खत्म हो गया है। इसके कारण दूसरे देशों में भेजने का खर्च पहले ही बढ़ गया है। अब रुपये की लगातार गिरती कीमत के कारण परेशानी और बढ़ गई है।
सीआईआई से जुड़ी किरण चोपड़ा ने बताया कि रुपये के अवमूल्यन से कच्चा माल और मशीनें आयात करने वाले सभी उद्योग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं। लागत बढ़ने के कारण पहले के मुकाबले ज्यादा खर्च हो रहा है। कार, फार्मा, स्पेशल मेटल समेत कई उद्योगों में ज्यादा खर्च हो रहा है। इससे सीधे तौर पर वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे।