- पराली जलना शुरू हो गया है, दम घोंटने वाले प्रदूषण के लिए तैयार हो जाइए, आग के शून्य स्वरूप के दावे खोखले साबित हो रहे हैं

पराली जलना शुरू हो गया है, दम घोंटने वाले प्रदूषण के लिए तैयार हो जाइए, आग के शून्य स्वरूप के दावे खोखले साबित हो रहे हैं

हरियाणा और पंजाब में खेतों से उठने वाला पराली का धुआं हर साल की तरह इस बार भी हवा को जहरीला बना देगा। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत में अक्टूबर के पहले दिन पराली जलाने की 285 से ज्यादा घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि पंजाब और हरियाणा ने 2024 तक पराली जलाने को शून्य करने का वादा किया था।

इस महीने दिवाली और दशहरा है। साथ ही धान की कटाई भी शुरू हो गई है। इस सीजन की शुरुआत के साथ ही दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की परत एक बार फिर गहराने लगी है। दिल्ली सरकार ने फिलहाल इस बात पर सहमति जताई है कि ऑड-ईवन लागू किया जाएगा। लेकिन कई रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती हैं कि सिर्फ वाहनों से होने वाला प्रदूषण ही दिल्ली की सेहत को खराब नहीं करता, पराली भी दिल्ली की आबोहवा को खराब करने की बड़ी वजहों में से एक है।

हरियाणा और पंजाब में खेतों से उठने वाला पराली का धुआं हर साल की तरह इस बार भी हवा को जहरीला बना देगा। यह चिंता का विषय है क्योंकि पंजाब और हरियाणा ने 2024 तक शून्य पराली जलाने का वादा किया था। वैसे तो पंजाब और हरियाणा के खेतों में धान की कटाई के बाद ही कृषि अवशेष जलाना शुरू हो जाता है, लेकिन 15 सितंबर के बाद इसमें बढ़ोतरी होने लगती है। पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं 15 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच होती हैं। इस दौरान दिवाली का त्योहार भी आता है और हवा की गति बहुत धीमी होती है। पराली और दिवाली का धुआं मिलकर प्रदूषण की स्थिति को खतरनाक बना देता है। करीब डेढ़ महीने तक दिल्ली-एनसीआर के लोग इस पराली के धुएं के कारण प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर होते हैं।

सिगरेट जितना छोटा प्रदूषक भी हवा को जहरीला बना सकता है, तो सोचिए एक टन पराली जलाने से निकलने वाला धुआं कितनी तबाही मचाएगा! वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की रिपोर्ट बताती है कि एक टन पराली जलाने से हवा में सैकड़ों किलो जहरीली गैसें और कण निकलते हैं, जो धीरे-धीरे दिल्ली की सांसों में जहर घोल रहे हैं।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उससे सटे इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक मीट्रिक टन पराली जलाने से करीब 3 किलो पार्टिकुलेट मैटर, दो किलो सल्फर डाइऑक्साइड, 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड और 1460 किलो कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से सख्त लहजे में पूछा था कि ऐसा हर साल होता है।

हर साल पराली जलाई जाती है, क्या इसमें कोई कमी आई है? रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा और पंजाब में हर साल करीब 27 मिलियन टन पराली कृषि अवशेष के रूप में निकलती है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में लंबे समय से वायु प्रदूषण पर काम कर रहे विवेक चट्टोपाध्याय का कहना है कि अक्टूबर का महीना शुरू होते ही पराली जलाने की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। सैटेलाइट से मिली तस्वीरों में पराली जलाने के तेजी से बढ़ते मामलों को साफ देखा जा सकता है।

जल्द ही उत्तर पश्चिमी हवाएं चलने लगेंगी। ऐसे में दिल्ली की हवा पराली के धुएं से भर जाएगी। पराली जलाने के समय दिल्ली के प्रदूषण में पराली के धुएं की हिस्सेदारी औसतन 25 फीसदी तक होती है। इसके बाद प्रदूषण का दूसरा बड़ा कारण वाहनों का धुआं है। पराली जलाने के मामलों पर समय रहते अंकुश लगाने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उससे सटे इलाकों में सख्त कदम उठाने होंगे। किसानों को जागरूक करने के साथ ही उन्हें पंजाब, हरियाणा और एनसीआर में आने वाले राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में प्रशासन के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।

सरकार के प्रारंभिक चेतावनी तंत्र की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर 4 अक्टूबर तक मध्यम स्तर पर रहेगा। लेकिन अगले एक हफ्ते में हवा में प्रदूषण काफी बढ़ जाएगा और हवा खराब स्तर तक प्रदूषित हो जाएगी। उत्तर-पश्चिमी हवाओं के चलने और हवा की गति कम होने के साथ ही हवा में प्रदूषण का स्तर और बढ़ जाएगा।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की सदस्य और टेरी की महानिदेशक डॉ. विभा धवन का कहना है कि पराली जलाने की समस्या सालाना है। हमें इस समस्या की तह तक जाना होगा, तभी इसका समाधान हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पानी बचाने के लिए चावल की बुवाई के समय में बदलाव की नीति बनाई गई थी। पहले जहां मई में धान की नर्सरी डाली जाती थी, वहीं अब ज्यादातर जगहों पर जून में नर्सरी डाली जाती है।

ऐसे में धान की कटाई और अगली फसल लगाने के बीच बहुत कम समय बचता है। ऐसे में किसान पराली जला देते हैं। पिछले कुछ दशकों में फसलों का उत्पादन काफी बढ़ा है। लेकिन हमारे पास हार्वेस्टरों की संख्या उस अनुपात में नहीं बढ़ी है। बड़ी संख्या में हार्वेस्टर मध्य प्रदेश और हरियाणा के रास्ते पंजाब पहुंचते हैं। ऐसे में किसानों को अगली फसल की तैयारी के लिए कम समय मिलता है। दिल्ली में प्रदूषण की समस्या मुख्य रूप से अक्टूबर के पहले सप्ताह से नवंबर के आखिरी सप्ताह तक देखने को मिलती है। इस समय हवा बहुत धीमी होती है।

 हवा की दिशा के कारण हरियाणा, पंजाब और कभी-कभी अफगानिस्तान से भी प्रदूषण हवा के साथ दिल्ली पहुंचता है और यहीं फंस जाता है। इस दौरान पराली का धुआं भी दिल्ली पहुंचता है। दिल्ली का स्थानीय प्रदूषण और बाहर से आने वाला प्रदूषण मिलकर यहां के हालात को बेहद खराब कर देते हैं। दिल्ली में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए हमें हर तरह के प्रदूषण को कम करना होगा। पराली जलाने के मामलों को कम करने के साथ ही हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अक्टूबर से नवंबर के बीच सड़कों पर उड़ने वाली धूल को नियंत्रित किया जा सके। कूड़ा जलाना बंद करना होगा। वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करना होगा।

हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे। पेड़ हमें ऑक्सीजन तो देते ही हैं, साथ ही फिल्टर का काम भी करते हैं। ये हवा में मौजूद प्रदूषक कणों को रोकते हैं, जिससे हवा साफ रहती है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 17 फीसदी है। दिल्ली के पर्यावरण में पराली जलाने से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की हिस्सेदारी करीब 4 फीसदी है। रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति एके सिंह के मुताबिक केंद्र सरकार ने पराली प्रबंधन के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। किसानों के लिए मशीन बैंक बनाए गए हैं, जिसके जरिए किसान पराली का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं।

 

इस योजना का सबसे ज्यादा लाभ दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसानों को मिल रहा है। पराली प्रबंधन योजना 2017-18 में शुरू की गई थी। इस योजना की वजह से पराली जलाने की घटनाओं में 52 फीसदी की कमी आई है। पराली से किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है। इसके लिए किसानों को कई तरह की तकनीक और सुविधाओं की जानकारी भी दी जा रही है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के सदस्य और एनवायरोटेक इंस्ट्रूमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन श्याम कृष्ण गुप्ता का कहना है कि पराली जलाना स्थानीय समस्या है।

यह समस्या पंजाब, हरियाणा और एनसीआर से जुड़ी है। हमें इसका समाधान करने के लिए सबसे पहले इस समस्या की तह तक जाना होगा। करीब एक दशक पहले तक पराली कोई समस्या नहीं थी। यह समस्या तब पैदा हुई, जब लोगों ने आधुनिक हार्वेस्टर से फसलों की कटाई शुरू की। जब लोग धान की फसल को हाथ से या पारंपरिक तरीके से काटते थे, तो पराली का इस्तेमाल चारे या अन्य कामों में किया जाता था। कुछ लोग छत बनाने के लिए भी पराली खरीदते थे। लेकिन आधुनिक हार्वेस्टर आने के बाद खेतों से सिर्फ अनाज की कटाई होने लगी। बाकी पराली खेतों में ही रह जाती है।

 

अब पराली किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गई है। उन्हें इसे तुरंत साफ करके अगली फसल की बुवाई करनी होती है। ऐसे में सबसे आसान और खर्च रहित उपाय इसे जलाना ही है। ऐसे में पराली जलाना किसानों की मजबूरी और दिल्ली व एनसीआर के लोगों के लिए प्रदूषण की समस्या बन गई है। वैसे तो दिल्ली व एनसीआर में प्रदूषण के कई कारण हैं, लेकिन अगर हम आधुनिक हार्वेस्टर में कुछ तकनीकी बदलाव करें ताकि वह खेतों में धान की कटाई के साथ-साथ पराली को भी काटकर बांध दे, तो किसान पराली नहीं जलाएंगे बल्कि उसे बेचकर या उसका इस्तेमाल करके कुछ अतिरिक्त कमाई कर लेंगे। आधुनिक तकनीक की मदद से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।

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