- कांग्रेस के लिए ताकत ही मुसीबत बन गई! क्या जाटों को ज्यादा महत्व मिलने से ओबीसी छूट गए?

कांग्रेस के लिए ताकत ही मुसीबत बन गई! क्या जाटों को ज्यादा महत्व मिलने से ओबीसी छूट गए?

कांग्रेस ने कुल 89 टिकट दिए थे, जिनमें से 28 जाट समुदाय के लोगों को दिए गए। भाजपा ने सिर्फ 16 जाट उम्मीदवार उतारे। भाजपा ने जाट बहुल सीटों पर उन्हें प्राथमिकता दी, लेकिन उन्हें वहीं महत्व मिला, जहां पर अन्य ओबीसी जातियों जैसे कि गुर्जर, सैनी, कश्यप, यादव के वोट अच्छी संख्या में थे।

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे न सिर्फ कांग्रेस बल्कि चुनावी पंडितों को भी हैरान कर रहे हैं। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से भाजपा 49 पर आगे चल रही है और कांग्रेस 36 पर अटकी हुई है। हैरानी की बात यह है कि 10 साल की सत्ता के बाद भी भाजपा को इतना बहुमत मिला। वहीं, किसान, जवान और पहलवान का नारा देकर जीत की ओर बढ़ना चाह रही कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका है। अब राजनीतिक विश्लेषक इस हार के कारण और मायने तलाश रहे हैं। कांग्रेस की इस हार का एक कारण अकेले भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट को कमान देना और फिर टिकट बंटवारे में जाटों को महत्व देना है।

कांग्रेस के लिए ये नतीजे इतने बड़े झटके हैं कि जयराम रमेश ने कहा कि हम ऐसे नतीजे को स्वीकार नहीं कर सकते। इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जाएगी। राजनीतिक जानकारों का मानना ​​है कि अति आत्मविश्वास, एक ही नेता पर निर्भरता और जाट समुदाय को ज्यादा महत्व देना भी इस नतीजे की वजह हैं। दरअसल, कांग्रेस ने कुल 89 टिकट दिए थे, जिनमें से 28 जाट समुदाय के लोगों को दिए गए। भाजपा ने सिर्फ 16 जाट उम्मीदवार ही मैदान में उतारे। भाजपा ने जाट बहुल सीटों पर उन्हें प्राथमिकता दी, लेकिन जहां पर अन्य ओबीसी जातियों जैसे कि गुर्जर, सैनी, कश्यप, यादव के वोट अच्छी संख्या में थे, वहां पर उन्हें महत्व मिला।

टिकट वितरण में हुड्डा का दबदबा, जाटों को ज्यादा महत्व देने से स्थिति खराब हुई

इसके अलावा जाट समुदाय से आने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा को प्रचार की कमान सौंपी गई। टिकट वितरण में भी उनका दबदबा रहा और कहा जाता है कि प्रदेश में 72 उम्मीदवार उनकी पसंद के हिसाब से तय किए गए। वहीं, भाजपा ने नायब सिंह सैनी को आगे बढ़ाया, जो खुद सैनी समुदाय से हैं। इसके अलावा मोहन लाल बड़ौली जो कि ब्राह्मण हैं, उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। जातिगत तौर पर देखें तो हरियाणा में जाटों के बाद ब्राह्मणों की अच्छी खासी आबादी है। इसलिए सैनी और ब्राह्मणों को खुश किया गया। वहीं कृष्णपाल गुर्जर, सुभाष बराला, ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु समेत अन्य सभी नेताओं को भी प्रमुखता दी गई।

सैनी को आगे रखा और खट्टर से कुछ दूरी रखी, मंशा पूरी हुई

इससे भाजपा ने एक तरफ जाटों का ज्यादा ध्रुवीकरण नहीं होने दिया और दूसरी जातियों को भी अपने नियंत्रण में रखा। खास बात यह रही कि पूरे प्रचार अभियान में नायब सिंह सैनी को सबसे आगे रखा गया और वे बिना किसी विवाद में पड़े काम करते रहे। यह भी उनके पक्ष में गया, जबकि खट्टर, जिनसे नाराजगी की चर्चा थी, उन्हें भाजपा ने प्रचार अभियान से थोड़ा दूर रखा। इस तरह जहां एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को काउंटर किया गया, वहीं सामाजिक लामबंदी पर भी पूरा ध्यान दिया गया। इसके अलावा अहीरवाल बेल्ट में भाजपा को मिले समर्थन ने भी बची-खुची कसर पूरी कर दी।

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