ग्वालियर में तानसेन की समाधि पर एक इमली का पेड़ है। कहा जाता है कि तानसेन बचपन में बोल नहीं पाते थे, इसलिए वे इमली के पेड़ की पत्तियां चबाते थे, जिससे न केवल उन्हें बोलने में मदद मिली, बल्कि उनकी आवाज भी सुरीली हो गई। इसी वजह से यहां आने वाले संगीतकार इस पेड़ की पत्तियां चबाते हैं। हालांकि, पुराना पेड़ अब नहीं रहा, उसकी जगह नया पेड़ लगाया गया है।
संगीत सम्राट तानसेन के जीवन और समाधि से कई किंवदंतियां जुड़ी हैं। इन्हीं में से एक है हजीरा स्थित किले की तलहटी में गौस साहब की समाधि के पास स्थित सूर साधक तानसेन की समाधि के पास लगा इमली का पेड़। कहा जाता है कि इमली के पेड़ की पत्तियां खाने से गले के सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं और गला मधुर हो जाता है।
तानसेन भी इसी इमली के पेड़ के नीचे साधना करते थे और इमली की पत्तियां खाते थे। तानसेन की समाधि पर माथा टेकने आने वाला हर भक्त इमली की पत्तियां चबाता है। इसी मान्यता के चलते इमली का पेड़ खत्म हो गया। इस स्थान पर एक नया इमली का पेड़ उग आया है। अब भक्त इस पेड़ की पत्तियां खाते हैं।
अगर आप देश और दुनिया की ताज़ा ख़बरों और विश्लेषणों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो हमारे यूट्यूब चैनल और व्हाट्सएप चैनल से जुड़ें। 'बेजोड़ रत्ना' आपके लिए सबसे सटीक और बेहतरीन समाचार प्रदान करता है। हमारे यूट्यूब चैनल पर सब्सक्राइब करें और व्हाट्सएप चैनल पर जुड़कर हर खबर सबसे पहले पाएं। लिंक नीचे दिए गए हैं।
समाधि स्थल पर तानसेन समारोह की तैयारियां शुरू हो गई हैं। तानसेन समारोह का शताब्दी वर्ष होने के कारण देशभर में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। देश-विदेश के संगीतकार तानसेन समारोह में शामिल होने और संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर जाने की तैयारी कर रहे हैं। संगीत के शौकीन लोग गूगल इंजन पर भी संगीत सम्राट तानसेन के जीवन से जुड़े रहस्यों को जानने की खोज कर रहे हैं। संगीतकार तानसेन की समाधि पर लगे इमली के पेड़ से जुड़ी किवदंतियों को भी जानने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे तो वे इमली के गुणों को जानते हैं, लेकिन यहां मामला आस्था और विश्वास से जुड़ा है।
तानसेन की समाधि पर लगा इमली का पेड़ देश-विदेश में इतना प्रसिद्ध था कि बड़े-बड़े संगीतकार आस्था और विश्वास के साथ तानसेन की समाधि पर माथा टेकने के बाद इमली के पेड़ के पत्ते चबाना नहीं भूलते। गले के रोगों को ठीक करने की मान्यता के कारण स्थानीय लोगों ने पेड़ की टहनियों को पत्तियों सहित उखाड़कर खा लिया और इस कारण यह बहुचर्चित पेड़ खत्म हो गया।
समाधि के पास ही दूसरा इमली का पेड़ भी उग आया है। इस पेड़ के पास एक शिलापट्ट भी है। जिसमें इमली के पेड़ की अवधारणा का भी उल्लेख है। आज भी लोग इस इमली के पेड़ की पत्तियों को खाने के लिए लालायित रहते हैं।
अगर आप देश और दुनिया की ताज़ा ख़बरों और विश्लेषणों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो हमारे यूट्यूब चैनल और व्हाट्सएप चैनल से जुड़ें। 'बेजोड़ रत्ना' आपके लिए सबसे सटीक और बेहतरीन समाचार प्रदान करता है। हमारे यूट्यूब चैनल पर सब्सक्राइब करें और व्हाट्सएप चैनल पर जुड़कर हर खबर सबसे पहले पाएं। लिंक नीचे दिए गए हैं।
तानसेन का जन्म ग्वालियर के बेहट गांव में रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। ऐसी किंवदंती है कि बचपन में तानसेन को बोलने में थोड़ी दिक्कत होती थी। उनके माता-पिता उन्हें मोहम्मद गौस के पास ले गए और यहीं उन्होंने संगीत का अभ्यास शुरू किया। जब तानसेन थोड़े बड़े हुए तो उन्होंने बोलना तो शुरू कर दिया, लेकिन उनकी आवाज सुरीली नहीं थी। इमली के पेड़ की कहानी यह है कि तानसेन अपनी आवाज को सुरीली बनाने के लिए इस इमली के पेड़ की पत्तियों को चबाते थे। यही वजह है कि आज भी संगीतकार इस इमली के पेड़ की पत्तियों को खाते हैं।