नक्सली यहां खुलेआम ट्रेनिंग कैंप चलाते थे। राज्य में डबल इंजन की सरकार आते ही यहां दर्जनों कैंप खोले गए और नक्सलियों पर लगाम लगाई गई और उन्हें उनके बेस एरिया से पीछे धकेला गया। इन दिनों यहां नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच भीषण लड़ाई चल रही है।
चार दशक बाद बस्तर में नक्सलियों का प्रभाव कम होता नजर आ रहा है। नक्सलियों के दबाव में सड़क, पुल और स्कूल निर्माण का विरोध करने वाले ग्रामीण अब डबल इंजन सरकार में विकास से आए बदलाव के समर्थन में खड़े होने लगे हैं।
विष्णुदेव साय सरकार की 'नियाद नेलनार' (आपका अच्छा गांव) योजना के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्र में विकास से आए बदलाव को देखने के लिए नईदुनिया ने पूर्वी और आसपास के इलाकों की पड़ताल की तो पता चला कि जैसे ही नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास पहुंचा, ग्रामीणों की नक्सलवाद से रुचि खत्म होने लगी।
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इसका बड़ा उदाहरण कुख्यात नक्सली कमांडर हिडमा और देवा बारसे के गांव सुकमा जिले के पूर्वी गांव में देखने को मिला। इस साल फरवरी में गांव में सुरक्षा बल का कैंप खोला गया था। इसके बाद जैसे ही खुद को सुरक्षित महसूस किया तो नक्सल हिंसा से परेशान ग्रामीणों ने नक्सलवाद को कड़ा जवाब देते हुए हिडमा और देवा बारसे के घरों को ध्वस्त कर दिया। दोनों के परिवार अब गांव छोड़कर जा चुके हैं।
पुर्वर्ती गांव सुकमा जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर बीजापुर और तेलंगाना राज्य की सीमा पर स्थित है। इसके आसपास का इलाका चार दशक से नक्सली हिंसा का केंद्र रहा है। यहां की विषम भौगोलिक परिस्थितियों का फायदा उठाकर नक्सलियों ने सलवा जुडूम आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर ग्रामीणों को बंदूकें थमाकर देश के कोने-कोने में भेजीं।
देश के सबसे ताकतवर नक्सल संगठन दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी और तेलंगाना स्टेट कमेटी के शीर्ष नक्सलियों की मौजूदगी इस इलाके के आसपास बनी हुई है। नक्सलियों की एकमात्र नक्सल बटालियन भी यहां सक्रिय है। हिडमा बटालियन का कमांडर था, जिसे सेंट्रल कमेटी मेंबर बनाकर बटालियन का प्रभारी बनाया गया है। हिडमा की जगह बरसे देवा को बटालियन का कमांडर बनाया गया है।
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पूवरती के भीमा माड़वी ने बताया कि नक्सलियों ने ग्रामीणों के मन में यह बात भर दी थी कि सुरक्षा बल और सरकार एक दूसरे के दुश्मन हैं। यही वजह है कि जब सुरक्षा बलों ने गांव में कैंप लगाया तो सभी जंगल की ओर भाग गए। इसके बाद गांव में सड़क, स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र, सौर ऊर्जा से बिजली, पेयजल और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।
इससे ग्रामीणों का सुरक्षा बलों और सरकार पर भरोसा बढ़ा है। यहां से तीन किमी दूर स्थित ओईपारा में बारसे देवा का घर है। वहां अभी विकास कार्य शुरू नहीं हुआ है। जंगल में पगडंडी से होते हुए ओईपारा पहुंचने पर बारसे देवा के घर के पास हूंगा मिला। हूंगा का कहना है कि पूवरती में जन सुविधाओं का विकास देखकर अब ओईपारा के ग्रामीण भी चाहते हैं कि उनके पारा में भी सड़क, पानी, बिजली और स्कूल की सुविधाएं मुहैया कराई जाएं।
एक दिन पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह नक्सल संवेदनशील इलाकों में विकास से आए बदलाव को देखने के लिए पूर्वी से करीब सात किलोमीटर दूर बीजापुर जिले के गुंडम पहुंचे थे। शाह ने जनचौपाल लगाई और ग्रामीणों से मिलकर विकास से आए बदलाव के बारे में उनकी राय जानी। उन्होंने जवानों से बात कर सुरक्षा बलों का मनोबल भी बढ़ाया। जनचौपाल में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा भी मौजूद थे।
डबल इंजन सरकार में 'नियाद नेलनार' योजना से सुदूर इलाकों के गांवों में विकास कार्यों में तेजी आई है। दशकों बाद बस्तर में बड़ा बदलाव दिख रहा है। लोगों को सरकार की योजनाओं का लाभ मिलने लगा है, जिससे जीवन आसान हुआ है। - केदार कश्यप, प्रभारी मंत्री सुकमा