- एक ऐसा मंदिर जहां हैं 25 हजार चूहे, भक्तों को मिलता है झूठा प्रसाद

एक ऐसा मंदिर जहां हैं 25 हजार चूहे, भक्तों को मिलता है झूठा प्रसाद

अगर चूहे किसी खाद्य पदार्थ को छू लेते हैं तो हम उसे फेंक देते हैं क्योंकि उसे खाने से बीमार होने की संभावना रहती है, लेकिन एक मंदिर ऐसा भी है जहां चूहों द्वारा छोड़ा गया प्रसाद ही मिलता है। ये पढ़कर आपको थोड़ा अजीब लग रहा होगा, लेकिन ये सच है। राजस्थान के बीकानेर में स्थित करणी माता मंदिर में करीब 25 हजार चूहे हैं, जिन्हें माता की संतान माना जाता है। जानिए मंदिर में इतने चूहे कहां से आए और क्यों इनके बचे हुए प्रसाद को खाने के बाद भी श्रद्धालु बीमार नहीं पड़ते।

बीकानेर से करीब 30 किमी. दूर देशनोक में स्थित इस मंदिर को चूहों वाली माता, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां चूहों को काबा कहा जाता है। मंदिर में चूहों की संख्या इतनी ज्यादा है कि इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर में आप पैर ऊपर उठाकर नहीं चल सकते, बल्कि पैर घसीटकर चलना पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पैर ऊपर उठाकर चलने से पैरों के नीचे कोई काबा नहीं आता, इसे अशुभ माना जाता है।

मां करणी को जगदंबा माता का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि इनका जन्म 1387 में एक चारण परिवार में हुआ था और इनका बचपन का नाम रिघुबाई था। इनका विवाह साठिका गांव के किपोजी चरण से हुआ था, लेकिन सांसारिक जीवन से ऊबकर उन्होंने किपोजी चरण का विवाह अपनी छोटी बहन गुलाब से करवा दिया और खुद मां की भक्ति और लोगों की सेवा में लीन हो गईं।

 

लोगों की मदद करने और चमत्कारी शक्तियों के कारण स्थानीय लोग इन्हें करणी माता के नाम से पूजने लगे। जहां अब मंदिर है, वहां एक गुफा है जहां करणी माता अपनी इष्ट देवी की पूजा करती थीं। कहा जाता है कि माता 151 वर्षों तक जीवित रहीं। उनके ज्योतिर्लिंग के बाद भक्तों ने वहीं उनकी मूर्ति स्थापित की और उनकी पूजा करने लगे।

काले चूहों के साथ-साथ यहां कुछ सफेद चूहे भी हैं, जिन्हें अधिक पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि एक बार करणी माता के बच्चे, उनके पति और उनकी बहन के बेटे लक्ष्मण की कपिल सरोवर में डूबकर मौत हो गई थी। जब माता को इस बात का पता चला तो उन्होंने मृत्यु के देवता यमराज से लक्ष्मण को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की, जिसके बाद यमराज को मजबूर होकर चूहे का रूप धारण कर लक्ष्मण को पुनर्जीवित करना पड़ा।

 वैसे बीकानेर के लोकगीतों में इन चूहों की एक अलग कहानी बताई गई है। इनके अनुसार एक बार बीस हजार सैनिकों की टुकड़ी देशनोक पर आक्रमण करने आई थी, जिन्हें माता ने अपनी शक्ति से चूहों में बदल दिया था। इन चूहों की एक और खासियत यह है कि सुबह पांच बजे मंदिर में होने वाली मंगला आरती और शाम सात बजे संध्या आरती के समय चूहे अपने बिलों से बाहर निकल आते हैं।

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