- 'अधिकारियों की अनुमति के बिना किसी घर को प्रार्थना गृह में नहीं बदला जा सकता', मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया

'अधिकारियों की अनुमति के बिना किसी घर को प्रार्थना गृह में नहीं बदला जा सकता', मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया

मद्रास हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अधिकारियों की अनुमति के बिना किसी घर को प्रार्थना घर में नहीं बदला जा सकता। कोर्ट ने पादरी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सिर्फ लाउडस्पीकर का इस्तेमाल न करने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। मुख्य मुद्दा यह है कि याचिकाकर्ता बिना अनुमति के घर को प्रार्थना घर में नहीं बदल सकता।

ई दिल्ली। मद्रास हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि बिना अधिकारियों की अनुमति के किसी घर को प्रार्थना घर में नहीं बदला जा सकता। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पादरी को घर को प्रार्थना घर के तौर पर इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी, जबकि याचिकाकर्ता पादरी ने हलफनामा दाखिल कर घर में लाउडस्पीकर और माइक्रोफोन का इस्तेमाल किए बिना शांतिपूर्ण तरीके से प्रार्थना करने का आश्वासन दिया था।मद्रास हाई कोर्ट ने कहा- पत्नी के सहयोग के बिना पैसा नहीं कमा पाएगा पति,  संपत्ति में भी है बराबर का हक - Madras High Court said- husband will not be  able

अगर आप देश और दुनिया की ताज़ा ख़बरों और विश्लेषणों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो हमारे यूट्यूब चैनल और व्हाट्सएप  चैनल से जुड़ें। 'बेजोड़ रत्न' आपके लिए सबसे सटीक और बेहतरीन समाचार प्रदान करता है। हमारे यूट्यूब चैनल पर सब्सक्राइब करें और व्हाट्सएप चैनल पर जुड़कर हर खबर सबसे पहले पाएं।

youtube- https://www.youtube.com/@bejodratna646



कोर्ट ने कहा कि सिर्फ लाउडस्पीकर या माइक्रोफोन का इस्तेमाल न करने से समस्या का समाधान नहीं होगा। मुख्य मुद्दा यह है कि याचिकाकर्ता घर को प्रार्थना सभाओं के लिए प्रार्थना घर में नहीं बदल सकता। यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट के जज एन. 

आनंद वेंकटेश ने 13 जून को तमिलनाडु के तिरुवरुर जिले के कोडावसल तालुका के पादरी एल जोसेफ विल्सन की याचिका का निपटारा करते हुए यह आदेश दिया। इस मामले में पादरी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपने प्रार्थना घर के खिलाफ की गई कार्रवाई को रद्द करने की मांग की थी।

परिसर को किया गया सील

घर में प्रार्थना सभाओं के कारण पड़ोस के लोगों को हो रही परेशानी की शिकायत पर अधिकारियों ने परिसर को सील कर दिया था। इससे पहले पादरी ने घर की जगह चर्च बनाने के लिए प्राधिकरण से अनुमति मांगी थी, जो नहीं मिली। इसके बाद पादरी ने हाईकोर्ट में यह याचिका दायर की। इस मामले में याचिकाकर्ता पादरी का वर्ड ऑफ गॉड मिनिस्ट्रीज ट्रस्ट नाम का एक ट्रस्ट था। 
अथॉरटीज की इजाजत के बगैर घर को प्रार्थना घर में नहीं कर सकते हैं तब्दील', मद्रास  हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला - Madras High Court decision Converting a house  into a prayer
इस ट्रस्ट की स्थापना 2007 में हुई थी और 2023 में लीज भी इसी ट्रस्ट को ट्रांसफर कर दी गई थी। उस परिसर में परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों के साथ नियमित प्रार्थना सभाएं होती थीं। याचिकाकर्ता ने चर्च बनाने की अनुमति मांगी थी याचिकाकर्ता ने 2 जनवरी 2023 को वह संपत्ति खरीदी और उसके बाद वहां नियमित रूप से प्रार्थना सभाएं आयोजित करना शुरू कर दिया। 

उनकी प्रार्थना सभा के खिलाफ अधिकारियों से शिकायत की गई, जिसके बाद पुलिस ने वहां जाकर जांच की। याचिकाकर्ता ने वहां चर्च बनाने की अनुमति के लिए आवेदन किया, लेकिन जिला कलेक्टर ने आवेदन खारिज कर दिया। इस दौरान तहसीलदार ने उन्हें नोटिस जारी कर 10 दिन के अंदर प्रार्थना सभा बंद करने का आदेश दिया। फिर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की जिस पर फैसला आया है।.

मामले में जिला कलेक्टर की ओर से कोर्ट को दिए गए जवाब में कहा गया कि याचिकाकर्ता बिना अनुमति के प्रार्थना सभा नहीं चला सकता। उसकी प्रार्थना सभा से मोहल्ले और इलाके के लोगों को परेशानी होती है। इस संबंध में मद्रास हाईकोर्ट के पिछले फैसले का हवाला दिया गया जिसमें कोर्ट ने कहा था कि नियमों के तहत उचित अनुमति लिए बिना प्रार्थना सभा प्रार्थना हॉल में नहीं की जा सकती।

किसी स्थान को प्रार्थना हॉल बनाने के लिए अनुमति लेनी होती है

मौजूदा फैसले में हाईकोर्ट ने पाया कि यह मामला 29 अप्रैल 2021 को दिए गए पिछले फैसले से पूरी तरह आच्छादित है। उस फैसले में कोर्ट ने माना था कि धार्मिक उद्देश्यों के लिए पूजा स्थल बनाने के लिए नियमों के तहत अनुमति लेनी होती है।मद्रास हाई कोर्ट ने फिर कहा घर को प्रार्थना सभा बनाने के लिए अनुमति जरुरी |  Madras high court ne fir kaha ghar ko prarthana sabha banane ke liye  anumati jaruri

उस फैसले में हाईकोर्ट ने पुलिस कमिश्नर बनाम वी. आचार्य जगदीश्वरानंद वैद्ययुता व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने धर्म के अनिवार्य और आवश्यक आचरण की व्याख्या की है। हाईकोर्ट ने अपने ताजा फैसले में कहा कि पिछले विभिन्न फैसलों से यह स्पष्ट है कि प्रार्थना कक्ष में प्रार्थना सभा करने के लिए नियमों के तहत संबंधित अधिकारी से अनुमति लेनी होती है। इसलिए याचिकाकर्ता अधिकार के तौर पर बिना अनुमति के प्रार्थना कक्ष में प्रार्थना सभा नहीं कर सकता।


सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किए बिना शांतिपूर्वक प्रार्थना सभा करने का हलफनामा दिया था, लेकिन कोर्ट इससे सहमत नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ लाउडस्पीकर या माइक्रोफोन का इस्तेमाल न करने से मसला हल नहीं होगा। मुख्य मसला यह है कि याचिकाकर्ता घर को प्रार्थना कक्ष में तब्दील नहीं कर सकता। इसके लिए अधिकारियों से उचित अनुमति लेनी होगी। परिसर से सील हटाने की अनुमति कब मिलेगी? कोर्ट ने कहा कि वह अधिकारियों को परिसर से सील हटाने का आदेश तभी देगा, जब संबंधित अधिकारी की अनुमति के बिना संपत्ति का इस्तेमाल प्रार्थना कक्ष के तौर पर न किया जाए। 

हाईकोर्ट ने तहसीलदार को परिसर से सील हटाने का आदेश दिया है, लेकिन साथ ही निर्देश दिया है कि संपत्ति का इस्तेमाल प्रार्थना कक्ष के तौर पर न किया जाए। यदि याचिकाकर्ता संपत्ति को प्रार्थना कक्ष में बदलना चाहता है तो उसे इसके लिए जिला कलेक्टर से अनुमति लेनी चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि यदि संपत्ति को फिर से प्रार्थना कक्ष के रूप में उपयोग करने का कोई प्रयास किया जाता है तो प्रशासन कानून के अनुसार कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगा।

Comments About This News :

खबरें और भी हैं...!

वीडियो

देश

इंफ़ोग्राफ़िक

दुनिया

Tag