2061 में 1.7 अरब तक पहुँचने के बाद भारत की जनसंख्या में गिरावट शुरू हो जाएगी, लेकिन 2100 तक यह दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहेगा। महिलाओं की भागीदारी और शिक्षा-स्वास्थ्य में सुधार के साथ, भारत जनसांख्यिकीय चुनौतियों को अवसरों में बदल सकता है।
आने वाले वर्षों में भारत की जनसंख्या में बहुत महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिलेंगे। मैकिन्से और संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या संभावनाएँ 2024 की हालिया जनसांख्यिकीय रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या 2061 में 1.7 अरब के अपने चरम पर पहुँच जाएगी, जिसके बाद इसमें गिरावट शुरू हो जाएगी। लेकिन इस गिरावट के बावजूद, भारत सदी के अंत तक दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहेगा। अनुमान है कि 2100 तक भारत की जनसंख्या 1.5 अरब हो जाएगी, जो चीन की तत्कालीन जनसंख्या (633 मिलियन) के दोगुने से भी अधिक होगी।
2100 में जनसंख्या घटकर 1.5 अरब हो जाएगी
मैककिंसे की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की प्रजनन दर प्रति महिला 1.98 बच्चे है, जो 2.1 की प्रतिस्थापन दर से कम है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या 2054 में बढ़कर 1.69 अरब हो जाएगी और 2061 में 1.70 अरब के शिखर पर पहुँचने के बाद, 2100 में धीरे-धीरे घटकर 1.5 अरब हो जाएगी। दूसरी ओर, चीन की जनसंख्या 2024 में 1.41 अरब है, जो 2054 तक घटकर 1.21 अरब और 2100 तक 63.3 करोड़ रह जाएगी। यह गिरावट चीन की अत्यंत कम प्रजनन दर (प्रति महिला 1.14 बच्चे) के कारण है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, चीन की जनसंख्या 2054 तक घटकर 20.4 करोड़ और सदी के अंत तक घटकर 78.6 करोड़ हो जाएगी।
भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा
मैकिन्से की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जनसंख्या में वृद्ध लोगों की बढ़ती संख्या भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव डालेगी। 2050 तक, प्रत्येक वृद्ध व्यक्ति पर केवल 4.6 लोग ही कार्यरत होंगे, जो अभी 10 है। 2100 तक यह अनुपात 1.9 तक पहुँच जाएगा, जो आज जापान की स्थिति के समान है। इससे सरकारी खजाने और परिवारों पर वृद्धों की देखभाल का बोझ बढ़ेगा। इसके अलावा, 1997 से 2023 तक, भारत की युवा आबादी ने प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि में प्रति वर्ष 0.7 प्रतिशत का योगदान दिया, लेकिन 2050 तक यह योगदान घटकर 0.2 प्रतिशत रह जाएगा।
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महिलाओं के बल पर चुनौतियों से निपट सकता है भारत
रिपोर्ट बताती है कि भारत श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर इस जनसांख्यिकीय चुनौती से निपट सकता है, जो वर्तमान में 20-49 वर्ष आयु वर्ग में केवल 29 प्रतिशत है। अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में यह आँकड़ा 50-70% है। इससे वैश्विक उपभोग में भारत की हिस्सेदारी 2024 के 9% से बढ़कर 2050 में 16% हो जाएगी, जिससे भारत का वैश्विक महत्व और बढ़ जाएगा। आपको बता दें कि चीन की तुलना में भारत की जनसंख्या संरचना अभी भी युवा है। 2024 में भारत की औसत आयु 28.4 वर्ष थी, जबकि चीन की 39.6 वर्ष। 2100 तक भारत की औसत आयु 47.8 वर्ष और चीन की 60.7 वर्ष होगी।
भारत को उठाने होंगे कुछ बड़े कदम
यह समय भारत के लिए अपनी जनसांख्यिकीय ताकत को आर्थिक शक्ति में बदलने का है। विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, महिलाओं के लिए अधिक रोजगार के अवसर और तकनीकी नवाचारों को अपनाकर भारत 2061 के बाद जनसंख्या में गिरावट के बावजूद वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत रख सकता है। अगर भारत अभी से सही कदम उठाए, तो वह न केवल अपनी अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है, बल्कि सदी के अंत तक चीन से दोगुनी आबादी के साथ वैश्विक मंच पर एक मजबूत भूमिका भी निभा सकता है।