- सिद्धारमैया खेमे में फूट? 'डीके शिवकुमार मानेंगे अगर...', सीएम के करीबी सहयोगी का बड़ा बयान

सिद्धारमैया खेमे में फूट? 'डीके शिवकुमार मानेंगे अगर...', सीएम के करीबी सहयोगी का बड़ा बयान

जी. परमेश्वर ने दोहराया कि वह भी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और हाईकमान को पार्टी में उनके योगदान के बारे में पूरी जानकारी है।

कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही खींचतान के बीच, होम मिनिस्टर जी. परमेश्वर ने एक अहम बयान दिया है। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस हाईकमान डी.के. शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करता है, तो वह इसे पूरी तरह से मानेंगे। इस बयान को सिद्धारमैया खेमे से आ रहे सबसे मज़बूत संकेतों में से एक माना जा रहा है।

परमेश्वर ने क्या कहा?
एक मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "जब मुझसे मुख्यमंत्री पद के लिए मेरी ख्वाहिशों के बारे में पूछा जाता है, तो मैं जवाब देता हूं कि मैं रेस में हूं। लेकिन अगर पार्टी हाईकमान बदलाव को मंज़ूरी देता है और डी.के. शिवकुमार मुख्यमंत्री बनते हैं, तो हम इसे मान लेंगे।" उन्होंने यह भी कहा कि अगर पार्टी बदलाव को मंज़ूरी देती है, तो यह आसानी से और शांति से होगा।

खुद मुख्यमंत्री पद की चाहत
परमेश्वर ने दोहराया कि वह भी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और हाईकमान को पार्टी में उनके योगदान के बारे में पूरी जानकारी है। उन्होंने साफ किया कि आखिरी फैसला पार्टी हाईकमान का है। उन्होंने कांग्रेस प्रेसिडेंट मल्लिकार्जुन खड़गे को भी "सही उम्मीदवार" बताया, लेकिन कहा कि उन्हें सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच किसी समझौते के बारे में पता नहीं है।

कर्नाटक में चल रही लीडरशिप की खींचतान
कर्नाटक में अभी मुख्यमंत्री पद को लेकर अटकलें तेज हैं। यह खींचतान सिद्धारमैया और डिप्टी चीफ मिनिस्टर डीके शिवकुमार के बीच कथित पावर-शेयरिंग समझौते के इर्द-गिर्द घूम रही है। सभी को पार्टी हाईकमान के फैसले का इंतजार है, जो राज्य की राजनीति की दिशा तय करेगा।

डीके शिवकुमार का इशारा देने वाला बयान
इससे पहले, कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही खींचतान के बीच, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी चीफ मिनिस्टर डीके शिवकुमार ने एक परोक्ष बयान जारी किया था। उन्होंने कहा, "शब्दों की ताकत दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है, और वादे निभाना सबसे बड़ी ताकत है।" उनके इस बयान को सिद्धारमैया के बाद सत्ता परिवर्तन की मांग और उससे जुड़े राजनीतिक दबाव के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।

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