मुंबई, । राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत आने वाले महाराष्ट्र के 40 हजार संविदा डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के हड़ताल पर रहने से स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव बढ़ गया है. हड़ताल के एक माह बाद भी राज्य सरकार उनकी मांगों को अनसुना कर रही है. दो वर्ष पूर्व देश में आये कोरोना महामारी के संकट के दौरान कोरोना योद्धाओं ने अपनी जान की परवाह किये बिना महाराष्ट्र के लोगों को सुरक्षित रखा।
हालाँकि, ये कोरोना योद्धा पिछले 30 दिनों से सरकार से उन्हें नौकरियों में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार उनकी मांग को नजरअंदाज कर रही है. आलम यह है कि जब तक सरकार कोई फैसला नहीं ले लेती, तब तक हड़ताल खत्म नहीं होगी. इस हड़ताल में राज्य भर में करीब 167 तरह की योजनाओं में काम करने वाले 40 हजार कर्मचारी शामिल हुए हैं. दरअसल पिछले 25 वर्षों से ये संविदा कर्मचारी (ठेकाकर्मी) अल्प वेतन पर काम कर रहे हैं।
इसके बावजूद सरकारी सेवा में शामिल करने समेत अन्य मांगों को लेकर स्वास्थ्य कर्मियों ने पिछले 25 अक्टूबर से हड़ताल कर रखी है. चूंकि सरकार ने अभी तक उनकी सुध नहीं ली है, इसलिए यह आंदोलन जारी रहने की संभावना नजर आ रही है। सरकार द्वारा अब तक आंदोलन पर ध्यान नहीं देने से कोरोना काल में योद्धा के रूप में गौरवान्वित हुए राज्य के 40 हजार योद्धा संकट में हैं, जिससे उनमें आक्रोश पैदा हो गया है. उनका कहना है कि यदि किसी सरकारी कर्मचारी को एक लाख रुपये प्रति माह वेतन मिल रहा है और संविदा कर्मचारियों को उतना ही काम करने के लिए केवल बीस हजार रुपये प्रति माह मिल रहा है, तो किसी को किस मानसिकता से काम करना चाहिए? यदि वेतन में इतनी बड़ी असमानता है तो हम कैसे जीवित रहेंगे?