जल है तो कल है. यह नारा कागजों पर ज्यादा जमीन पर कम दिखता है। राष्ट्रीय राजधानी की स्थिति यह है कि जिस गति से भूजल दोहन हो रहा है उसके मुताबिक भविष्य में उपयोग के लिए सिर्फ 0.03 प्रतिशत पानी ही बचेगा। जल शक्ति मंत्रालय की केंद्रीय भूजल संसाधन आकलन रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में जितना भूजल रिचार्ज होता है, उतना ही दोहन कर लिया जाता है। इससे आने वाले समय में दिल्ली की प्यासी धरती के देने के लिए कुछ नहीं बचेगा। लगभग पूरी तरह शहरीकृत हो चुकी राष्ट्रीय राजधानी में भूजल दोहन का अधिकांश हिस्सा घरेलू उपयोग में खर्च होता है।
वर्ष 2023 के आकलन रिपोर्ट के मुताबिक, सालाना धरती के पेट में 34 प्रतिशत पानी पहुंच रहा है, जिसका 26 प्रतिशत घरेलु और करीब आठ प्रतिशत सिंचाई के लिए दोहन हो रहा है भविष्य में घेरलु उपयोग के लिए यह आंकड़ा 28 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। ऐसी स्थिति में अगर समय रहते भूजल दोहन पर लगाम नहीं लगाया गया तो दिल्ली की भूमि धीरे धीरे मरुस्थल जैसी हो जाएगी। केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के 11 में से पांच जिलों मे 100 प्रतिशत से अधिक भूजल दोहन हो रहा है। इसमें सबसे भयावह तस्वीर नई दिल्ली जिले की है। यहां करीब 138 प्रतिशत भूजल दोहन हो रहा है। जिस गति से यहां भूजल दोहन हो रहा है उससे अनुमान लगाया गया है
कि भविष्य के लिए जिले में भूजल खत्म हो जाएगा। इस जिले में लुटियंस के साथ दक्षिण दिल्ली का बड़ा हिस्सा आता है। यानी यह इलाका लगभग पूरी तरह से शहरीकृत है। इस जिले में 2,913 हेक्टेयर मीटर (एचएएम) भूजल रिचार्ज हो रहा है और 3,612 एचएएम भूजल दोहन हो रहा है। अकेले घरेलु उपयोग में भूजल रिचार्ज से अधिक 2,923 एचएएम भूजल चला जा रहा है। इसी के साथ दक्षिणी दिल्ली जिले में भी भूूजल खत्म होने का खतरा मंडरा है। करीब 112 प्रतिशत भूजल दोहन से यहां भविष्य के लिए मात्र 1.75 प्रतिशत ही भूजल बचेगा। इसी तरह, शहादरा में लगभग 115 प्रतिशत भूजल दोहन से भविष्य में करीब चार प्रतिशत ही पानी बचेगा। उत्तरी व उत्तर पूर्वी जिले में भी सौ प्रतिशत से अधिक भूजल दोहन हो रहा है।