सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर कहा कि एक घर में कई लोग रहते हैं। यदि किसी के विरुद्ध कोई अपराध दर्ज किया गया है या दर्ज किया गया है तो घर में रहने वाले सभी लोगों पर विध्वंस के माध्यम से सामूहिक दंड नहीं दिया जा सकता है, उस अपराध से कोई लेना-देना नहीं है। हमारा संविधान और कानून इसका विस्तार नहीं देता है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मनमानी कार्रवाई पर ब्रेक लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना मनमाने ढंग से बुलडोजर कार्रवाई को अराजकता और अराजकता करार दिया है।
साथ ही कहा कि इस निरंकुश और मनमानी कार्रवाई का हमारे संविधान में कोई स्थान नहीं है। किसी भी आरोपी, यहां तक कि अपराधी की संपत्ति (मकान या दुकान, कार्यालय आदि) को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना नहीं गिराया जा सकता, ऐसा करना असंवैधानिक है। कार्यपालिका जज बनकर किसी को दंडित नहीं कर सकती।
कोर्ट ने ध्वस्तीकरण कार्रवाई को लेकर पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें संपत्ति गिराने से पहले 15 दिन का नोटिस और सुनवाई का मौका देने की बात कही गई है। हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि यह आदेश किसी भी सार्वजनिक संपत्ति पर अतिक्रमण और अवैध कब्जे पर लागू नहीं होगा। ऐसे अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने यह आदेश जमीयत उलमा-ए-हिंद व अन्य की ओर से बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिकाओं पर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने मामले का नाम बदलकर ध्वस्तीकरण के मामले में निर्देश कर दिया था। 95 पन्नों के विस्तृत आदेश में कोर्ट ने घर के मौलिक अधिकार पर मुहर लगाते हुए कहा कि घर यानी आश्रय जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है और इस तरह की कार्रवाई न केवल अराजकता है बल्कि संविधान में दिए गए जीवन के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है।
मनमाने ढंग से बुलडोजर कार्रवाई पर अंकुश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी कार्रवाई करने वाले अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय की है। कोर्ट ने कहा कि अगर अधिकारी कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करते हैं तो उनके खिलाफ न केवल अवमानना की कार्यवाही और मुकदमा दर्ज किया जा सकता है बल्कि ध्वस्त की गई संपत्ति के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी भी संबंधित अधिकारी की होगी और इसका खर्च भी उसकी जेब से लिया जाएगा। साथ ही उसे मुआवजा भी देना होगा।
यह होगी नोटिस देने की प्रक्रिया : बिना कारण बताओ नोटिस दिए ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं की जा सकेगी। जवाब के लिए 15 दिन का समय देना होगा। यह समय नोटिस प्राप्ति की तिथि से शुरू होगा।
नोटिस संपत्ति स्वामी या अधिभोगी को उसके पते पर पंजीकृत डाक से भेजना होगा। साथ ही नोटिस को संबंधित परिसर के बाहर चस्पा करना होगा। - बैकडेट नोटिस के आरोपों से बचने के लिए नोटिस की विधिवत तामील होते ही इसकी सूचना कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय को ईमेल या ऑटो जनरेटेड रिप्लाई के जरिए भेजनी होगी। - कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय से रसीद भी जारी होगी। जिला मजिस्ट्रेट एक माह के भीतर नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे और इसके लिए ईमेल एड्रेस जारी कर संबंधित निकायों को सूचित करेंगे।
सुनवाई के बाद नामित प्राधिकारी अंतिम आदेश जारी करेगा, जिसमें यह ध्यान रखना होगा- - नोटिस देने वाले व्यक्ति के तर्क और यदि नामित प्राधिकारी असहमत है तो उसका कारण। - क्या अनधिकृत निर्माण शमन (जुर्माना देकर नियमितीकरण) के योग्य है? यदि नहीं तो उसका कारण। - यदि नामित प्राधिकारी पाता है कि केवल एक हिस्सा अनधिकृत है या शमन के योग्य नहीं है तो उसका विवरण। - यह भी बताना होगा कि ध्वस्तीकरण जैसा कठोर कदम क्यों उठाना पड़ा। केवल अनधिकृत हिस्से को ही शमन या ध्वस्त करना क्यों संभव नहीं था?
संपत्ति मालिक या कब्जेदार को अनाधिकृत निर्माण हटाने या ध्वस्त करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाएगा। नोटिस के बाद 15 दिन के भीतर यदि अनाधिकृत निर्माण नहीं हटाया जाता है और प्राधिकरण या कोर्ट उस पर स्थगन आदेश नहीं देता है तो संबंधित प्राधिकरण अनाधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की कार्रवाई कर सकता है। ध्वस्तीकरण से पहले दो पंचों द्वारा हस्ताक्षरित निरीक्षण रिपोर्ट भी तैयार करनी होगी।
ध्वस्तीकरण कार्रवाई की वीडियोग्राफी करानी होगी। संबंधित प्राधिकरण को रिपोर्ट में ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में शामिल पुलिस व अन्य अधिकारियों के नामों की सूची भी शामिल करनी होगी। - ध्वस्तीकरण रिपोर्ट नगर आयुक्त को ई-मेल से भेजने के साथ ही डिजिटल पोर्टल पर भी प्रदर्शित करनी होगी।