नई दिल्ली । हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि देश के सॉलिसिटर जनरल केंद्र की मोदी सरकार को क्या सलाह देते हैं, यह आरटीआई में नहीं बताया जा सकता। यह फैसला खुद दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनाते हुए कहा है कि यह आरटीआई से मुक्त है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुनाया कि भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल की ओर से भारत सरकार और अन्य सरकारी विभागों को दी गई कानूनी सलाह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(ई) के तहत खुलासे से मुक्त है।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की एकल पीठ ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल केंद्र सरकार और अन्य विभागों के हित में ईमानदारी से काम करने के लिए बाध्य हैं। इस फैसले का मतलब है कि सीआईसी अब यह आदेश नहीं दे सकता है कि सरकार उन कानूनी सलाहों को खोले, जो एसजी ने उसे दी हैं। हालांकि, कुछ विशेष मामलों में अदालत को यह अधिकार है कि वह उस मामले के आधार पर खुलासे का आदेश जरूर दे सकती है।
दरअसल केंद्र सरकार ने उस सूचना आयुक्त के आदेश के खिलाफ अपील की थी, जिसने केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के मुख्य सूचना अधिकारी को दूरसंचार विभाग को भारत के तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल की ओर से 2007 में दिए गए नोट/राय की एक प्रति प्रदान करने का निर्देश दिया था। इसमें श्री अग्रवाल यह बताने में असफल रहे कि सॉलिसिटर जनरल की सलाह का विवरण प्राप्त करने से जनहित में क्या होगा। याचिकाकर्ता यह प्रदर्शित करने में सक्षम नहीं हो पाया है कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8(2) के प्रावधानों को लागू करने के लिए जनहित क्या है। किसी भी सार्वजनिक हित के अभाव में, याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई जानकारी, जो आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1) के इस तहत मुक्त है।
इस पर कोर्ट ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल क्या सलाह देते हैं, आपको नहीं बता सकते। असान शब्दों में कहें तो, श्री अग्रवाल को यह साबित करने में विफल रहने के कारण कि सॉलिसिटर जनरल की राय को जानने से जनता को कैसे फायदा होगा, अदालत ने केंद्र सरकार की अपील को मंजूर कर लिया और सूचना आयुक्त के आदेश को रद्द कर दिया। इस फैसले का मतलब यह है कि आमतौर पर सरकार को सॉलिसिटर जनरल से ली गई कानूनी सलाह को सार्वजनिक करने की जरूरत कभी भी नहीं पड़ेगी।